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काल
स्वभाव
नियति
कर्म
पुरुषार्थ
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पाँच समवाय : अनेकांत दृष्टि
बीज, आज, वृक्ष, कल, समय कर्ताहर्ता, कर्म उदय हुआ काल आने पर ।
मछली पानी में तैरती है । अमुक बीज उगता नहीं । स्वभाव ही मुख्य है ।
भाग्य, भवितव्यता पूर्व से ही निर्णित है ।
जैसा कर्म, वैसा फल ।
पुरुषार्थ नहीं तो कुछ नहीं ।
काल : शुभाशुभ कर्मी तत्काल में उदय में आते नहीं । परिपक्व होने के पश्चात् उदय में आते हैं । कर्म को भी फल बताने में काम की अपेक्षा है ।
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