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चरवला
सामायिक में मन इधर-उधर होता है उसे चरवला हमें सावधान करता है । किस प्रकार ? चर-चरना, वलो- उसमें से निकलना ।
वृत्ति अवरोधक वह चरवला । सामायिक में सतत् याद करवाता है कि मैं सामायिक में हूँ। भूमि प्रमार्जन में उपयोगी बनता है ।
मुंहपत्ति के पचास बोल में अंतिम छ: बोल चरवले के उपयोग के लिए सार्थक करने के होते हैं ।
माप :
24 अंगूली डंडी - जीव 24 दंडक (मार्ग) से दंडित होने के कारण उसे दूर करने के लिए । आठ अंगूली की दिशीयाँ - आठ कर्म के बंध से जीव बंधा है उसे मुक्त करने के लिए ।
चोरस दांडी : स्त्रियों हेतु - स्त्री 4 गतियों का कारण बन जाती है ।
गोल दांडी : पुरुष हेतु - वासना की अधिकता स्त्री रूप माना जाता है ।
(खेस उत्तरासंग)
उत्तर - नाभि के ऊपर का शरीर, आसंग - साथ रहा हुआ । विनयसूचक वेश है (श्रावक की यूनिफार्म )
कंदोरा
जिन शासन का प्रतीक कहा गया है। कंदोरा बांधने से आत्मा में कौवत जागृत होता है । कमर पर बांधने से साधु भगवंत विहार करते हैं तो थकावट कम लगती है ।
सामायिक समता की प्राप्ति की युद्ध क्रिया है । कंदोरा इस क्रिया में सहायक बनता है । कंदोरा सूत का होना चाहिए । सूत से मूलाधार चक्र सक्रिय बनता है । कारण कि, कंदोरा मेरुदंड के नीचे के भाग एवं नाभि के मध्यम संबंध बनाता है ।
जैन दीक्षा अंगीकृत करें उस दिन कंदोरा बांधना होता है । वीर्यरक्षा, ब्रह्मचर्य पालन, वासना-विकारों को रोकता है। कंदोरे के किनारे पर ज्ञान एवं क्रिया को दर्शाती दो गांठ बांधी जाती है ।
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