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पच्चक्खाण आदि * विनय किसके जैसा?
गौतम स्वामी * त्याग किसके जैसा?
जंबू स्वामी * ब्रह्मचर्य किसके जैसा?
स्थूलिभद्र * जिनोपासना किसके जैसी? श्रेणिक राजा * स्तोत्र रचना किसके जैसी? मानतुंग सूरि * साहित्य ज्ञान किसका?
हरिभद्र सूरि * प्रभावकता किसकी?
नेमिसूरि * चरित्र किसका?
चंदनबाला * जातिस्मरण ज्ञान किसका ? आर्द्रकुमार
पच्चक्खाण (नियम) : कर्म आश्रव क्षय होवे, कर्मबंध का क्षय होवे।
मन की पाल याने पच्चक्खाण : संयम की सुवास, मन की दृढ़ता एवं जीवन की सार्थकता बढ़ती है । विकारो, तृष्णा का छेदन होता है इससे उपशम भाव प्रगट होता है और पच्चक्खाण शुद्धि होती है।
मूल संस्कृत शब्दः प्रत्याख्यान प्रात: नवकारसी एवं सायं चौविहार करो- तीर्यंच-नरक गति नहीं मिलती है सौ वर्ष में जितने कर्मों का नाश हो वह एक नवकारसी करने से होता है। सूर्योदय के पश्चात् 48 मिनिट तक चार (असणं, पाणं, खाईम, साईमं) प्रकार के आहार का त्याग। पच्चक्खाण कब
काल नवकासी सूर्योदय पूर्व सूर्योदय बाद 48 मिनिट 100 वर्ष की अकाम निर्जरा पोरिसी सूर्योदय पूर्व सूर्योदय से 1 प्रहर 1000 वर्ष की अकाम निर्जरा साड्डपोरिसी सूर्योदय पूर्व सूर्योदय से 17 प्रहर 10000 वर्ष की अकाम निर्जरा पुरिमड्ड सूर्योदय पूर्व सूर्योदय से 2 प्रहर 1लाख वर्ष प्रमाण के पापनाश GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 52 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe
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