________________
जैन क्रियाओं में विज्ञान
प्रबुद्ध जीवन, १६ जनवरी २००७ - डॉ. प्रीति शाह
* लांछन : जैन तीर्थंकरों के लांछन अर्थात् प्रतीक रुप कोई न कोई प्रकृति, वनस्पति या पशु-पक्षी मिलते हैं । तीर्थंकरों को किसी न किसी चैत्य वृक्ष के नीचे केवलज्ञान हुआ है। प्राणी एवं प्रकृति के साथ कैसा प्रगाढ़ अनुबंध है ।
I
* पर्यावरण (ECOLOGY) : जैन धर्म जगत का सर्वोत्कृष्ट पर्यावरण धर्म है तथा सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव जंतु की रक्षा की चिंता, विचारणा की जाती है। जैन धर्म का प्रथम मंदिर वृक्ष मंदिर है । प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान ने शत्रुंजय तीर्थ के रायण वृक्ष के नीचे बिराजित होकर विश्व को अहिंसा का प्रथम उपदेश प्रदान किया था ।
।
1
नेमकुमार ने प्राणी रक्षा की उत्कृष्ट भावना भायी । भगवान महावीर ने तो समग्र सृष्टि के जीवों के साथ एकात्म भाव की भावना में रहने का उपदेश दिया है । तत्वार्थ सूत्र के पर्यावरण रुप परस्परोग्रहो जीवानाम् का सूत्र आज के नारे Save the Planet काही पर्यायवाची है । कीड़ी का जीव हाथी पर तथा हाथी का जीव कीड़ी पर आधारित है । दुर्भाग्य से मानव हाथी ने कितने ही निर्दोष पशु-पक्षी का नाश किया है ।
* वनस्पति संवेदना - Polygraph Machine के तार छोड़ के साथ जोड़ने के बाद जैन धर्म की वनस्पतिकाय तरफ से सूक्ष्म तथा दीर्घ दृष्टि को विज्ञान ने ऐसा ही सिद्ध किया है
1. झाड़पान : विद्युत प्रवाह, अधिक- कम तापमान, तीव्र आघातों आदि प्रत्येक प्रतिक्रिया (Reaction) व्यक्त करता है ।
2. संगीत का उस पर प्रभाव पड़ता है ।
3.
Infrared या Ultra Violet Rays को देख सकते हैं एवं झाड़पान TV की उच्च Frequency अनुभव करता है ।
43