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'श्रद्धांध' की संवेदनाएँ तीर्थंकर के वर्ण ....
पद्मप्रभु, वासुपूज्य स्वामीजी, वर्णे बन्ने राता मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथजी नीला वर्ण नां त्राता चंद्रप्रभु ने शीतलनाथजी, श्वेत वर्ण नां धाम मुनिसुव्रत ने नेमिनाथ जी, बन्ने वर्णे श्याम सुवर्णे रंगे सोल शोभतां बाकी ना भगवंत चौबीस तीर्थंकर ना रंगे भीजातां अंगे अंग ।
जलपूजा, चंदनपूजा, पुष्पपूजा धूप दीप अक्षत नैवेद्य, फल पूजा थाये निमित्त समकित । पण 'पण' न रहे ...
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अगम्य छे रिश्ताओं जीवननां तुं कहे .. क्यारे शुं आवे उदय मां अने कया भव नुं क्यारे उभराय अने
क्यारेक आत्मा नी स्थिरता पण चले पण 'पण' ना रहे.
वली ध्रुव प्रक्षाल प्रभु का
प्रक्षाल का आनंद, प्रभु स्पर्श का स्पंदन प्रभाव में अजोड़, प्रभु रुप का अंजन समाहित हुए ना रहे, इस दिल का रंजन वहाँ निहारता रहूँ प्रभु के, इस मुख का खंजन !
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क्यारे जीव शुं चहे ?
क्यारे आ दिल वहे ?
अने
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