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आत्मस्वरूप की पहचान कर सर्व जीव मेरे जैसे चेतन स्वरूप है। मुझे किसी के साथ संबंध बिगाड़ना नहीं है । समस्त जीव मेरे मित्र हैं । धर्म के बीज मैत्री, प्रमोद, करुणा, माध्यस्थ, भाव में रहना है । वैर, विरोध, तिरस्कार, धिक्कार, अहंकार, निंदा के भाव, मैत्री आदि भावों का नाश करते हैं।
कषाय की मात्रा में वृद्धि होती रहेगी तो वैर की गांठ आत्मा में बंध जाएगी तथा उससे जीव बार-बार दुर्गति का अधिकारी बनता रहेगा । इस हेतु प्राण का भोग भी देना पड़े तो मैत्री भावना कभी भी खंडित नहीं करना चाहिए।
मोक्ष की पात्रता के विकास के लिए गुणानुरागी बनना आवश्यक है । आत्मा को परगुण दृष्टिगत कर आनंद की अनुभूति होना चाहिए। प्रमोद भावना को प्राप्त करना चाहिए।
समता योग को बलवान बनाना है ?
अरिहंत आदि चार शरण भाव से सहिष्णुता गुण प्राप्त करोगे तो समता योग बलवान बनेगा । समता योग मोक्ष के लिए असाधारण कारण है । समता में सामर्थ्य है कि, दो घड़ी मात्र में सकल कर्मों का नाश कर देती है।
समता को कैसे सिद्ध किया जा सकता है ? प्रत्येक आराधक को कषायों का निग्रह, इन्द्रियों, विषयों, मन का निग्रह बार-बार करते रहना चाहिए।
इन्द्रिय निग्रह रहित जीव - पौद्गलिक पदार्थ के अधीन रहता है। मन के निग्रह रहित जीव - बार-बार दूषित भावों में रमण करता है। विषय के निग्रह रहित जीव - पौद्गलिक पदार्थ के पीछे दौड़ता है। कषाय के निग्रह रहित जीव - बार-बार क्रोध-मान-माया-लोभ के वश में रहता है। यह चारों निग्रह आत्म जागृति के सेतु हैं।
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