________________
* तत्वार्थाधिगम सूत्र के नवमें अध्ययन में प्रायश्चित के 9 अधिकार कहे हैं ।
1. आलोचना - दोषों को गुरु समक्ष प्रगट कर आलोचना लेना । (मृगावती-चंदनबाला)
2. प्रतिक्रमण
अईमुत्ता मुि
उपरोक्त दोनों - आलोचना + प्रतिक्रमण । (विशेष शुद्धि - रहनेमि )
3. तदुभय 4. विवेक
5. व्युत्सर्ग
6. तप
7. छेद
8. परिहार
-
9. उपस्थान
-
-
-
-
-
-
१९७
अशुद्ध - अभक्ष्य का त्याग
काउसग्ग में वचन-व्यापार का त्याग। (मेतारज मुनि)
आत्मशुद्धि, कर्मक्षय, पाप शुद्धि की भावना (सुन्दरी स्त्री रत्न)
दीक्षा पर्याय के छेद से लगे पाप की शुद्धि ।
प्रायश्चित पूर्ण नहीं किया उसका पाप । ( सफल करने के लिए चंडकौशिक ने प्रयत्न किया)
-
• पूर्व पर्याय का त्याग, नूतन पर्याय में प्रवेश | शुद्धिकरण हेतु प्रयत्न करना सीखें ।
प. पू. आ. श्री विजय भुवनभानु सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न
प. पू. श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा.
अनन्त ज्ञानियों की वाणी है ; उत्तम नरभव की प्राप्ति एवं उत्तम कुल, धर्म सामग्री अनंत पुण्य राशि के योग से प्राप्त होता है ।
जीवन में उत्तम सद्गुरु का योग मिलना अति दुर्लभ है ।
जैन शासन वास्तव में अजोड़ है । जिससे सर्वनयो की सापेक्ष बातें, सप्तभंगी, स्याद्वाद-अनेकांतवाद, योगदृष्टि, ध्यान की सूक्ष्म बातें जानने को मिलती हैं ।
कषायों की तीव्र मात्रा मंद होते ही आत्मा शांत स्वभावयुक्त हो जाती है । कदाग्रहहठाग्रह को छोड़ देती है ।
34