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54. सिर्फ काया से कर्म बंध करने वाला, हजारों मछलियों को खाने वाला मगरमच्छ
प्रथम नरक एवं तंदुलिया मत्स्य मन और काया से कर्मबंध करके सातवीं नरक में
जाता है । (भगवती सूत्र : श. 24) 55. ज्ञात है कि पुद्गल द्रव्य सदा परिवर्तित होता है ? प्रत्येक औदारिक पुद्गल असंख्य
काल में अन्य पुद्गल बन जाता है । वैक्रिय पुद्गल अन्य वर्गणा रुप बनते हैं । ये स्याही के पुद्गल एक बार कर्म रुप में तुम्हारी आत्मा पर चिपके हुए थे। (भगवती
सूत्र :श. 12) 56. सर्वश्रेष्ठ स्थान सिद्ध क्षेत्र, सर्व अधम 7वीं नरक । असंख्यात वर्षों में जितने सिद्ध
होते हैं उससे अधिक 1 समय में नर्क में जाने वाले मिलते हैं । (पन्नवणा सूत्र) 57. श्वास के बिना जीवन संभव है ?
अनंत जीवों ने अनंतकाल तक श्वास ग्रहण किया ही नहीं और मृत्यु को प्राप्त हो गए। वनस्पतिकाय जीवों में ऐसे अनंत जीव हैं जो श्वांस पर्याप्ति बनाते-बनाते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं । ऐसा अनंत बार अनंत भवों में करते हैं। (भगवती सूत्र :
श. 24) 58. सागर का पानी कैसा होता है ? खारा ना? नहीं ! असंख्या सागर हैं, उसमें लवण
समुद्र आदि 7 समुद्रों के अलावा शेष जितने भी समुद्र हैं सभी का पानी गन्ने के रस के जैसा स्वाद वाला है । कालोदधि, पुष्कर, स्वयं भू रमण समुद्रो का पानी सादे पानी जैसा होता है। वारुणी समुद्र :- मदिरा (शराब) के समान है।
धृत समुद्र:- घी के समान (जिवाभिगम सूत्र)। 59. असंख्य निगोद के शरीर जितनी काया 1 वायु काया की,
असंख्य वायुकाय शरीर जितनी काया 1 तेउकाय की, असंख्य तेउकाय शरीर जितनी काया 1 अप्काय की
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