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को 3 प्रकार की वेदना : क्षेत्र वेदना, परमाधामी कृत वेदना, अन्य नारकी जीवों द्वारा करने में होती वेदना। क्षेत्र वेदना - दुनिया भर के पानी पिला दो तो भी प्यासे रहे, संपूर्ण लोक का आहार दे दो तो भी भूखे ही रहते हैं, फिर भी आहार नहीं मिलता । मिले तो अल्प रुप में और पानी तो मिले ही नहीं । नारकी जीव को भट्टी में डालते हैं तो उनको शांति का, सुख का और शीतलता का अनुभव होता है । क्षणवार में निद्राधीन हो जाते हैं । ए.सी. का अनुभव करते हैं । नरक में भट्टी से अनंत गुणा गर्मी होती है। 1-3 नर्क में उष्ण वेदना, 4-5वाँ में शीतोष्ण वेदना, 6-7 में शीत वेदना हिमालय के शिखर पर की हिमशिला से अनंतगुणा ठंडी नरक में सतत भोगते हैं। 33 सा. तक (जिवाभिगम सूत्र) 44. देवों के बीच युद्ध होते हैं । असुर कुमार आदि भुवनपति देव नीचे गिने जाते हैं ।
वैमानिक देव उच्च । कभी भुवनपति - वैमानिक का युद्ध होता है । तब वैमानिक देवों को शस्त्र बनाने नहीं पड़ते, वे जिसका स्पर्श करते वे शस्त्र बन जाते हैं । पत्ता तीक्ष्ण तलवार समान, शत्रु को काट डालते हैं, छोटा सा कंकर शत्रु को बहुत बड़ी शिला जैसा
अहसास कराता है। (भगवती सूत्र :श. 18, उ.7) 45. प्रत्येक 256 जीव में 16 जीव शाता वेदना वाले अनंत जीव की अनुपात प्रत्येक 16
जीव मात्र 1 कोशाता का उदय होता है । (पन्नवणा सूत्र : पद - 3) 46. सब के साथ संबंध बनाकर आया । वर्तमान के मिलते एक भी मनुष्य ऐसा नहीं कि
जिसके साथ भूतकाल में अनंत काल तक न रहा हो (भगवती सूत्र : श. 1) 47. आसक्ति बहुत करी, पुण्य का खर्च उससे कहीं अधिक किया - जैसे नीच कुल के
व्यक्ति के पास पैसा आता है तो उसे वापरते समय नहीं लगता; उसी प्रकार समझदार होकर भी जो विवेक से न वापरे तो क्या हो ? जितना पुण्यधन अनुत्तर देव 5 लाख वर्ष में क्षय करते हैं उतना पुण्य धन व्यंतर देव 100 वर्ष में क्षय कर देते हैं । (भगवती सूत्र : श. 18, उ.7)
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