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®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG 38. एक तिर्यंच पंचेंद्रिय अन्य तिर्यंच का सत्कार करता है, सन्मान करता है, लेने जाता
है, पहुंचाने भी जाता है, दो हाथ जोड़ता है । तिर्यंच में भी ऐसा सभ्य व्यवहार होता है।
(भगवती सूत्र :श. 14. उ. 3) 39. देव पत्थर में प्रवेश करता है तब पृथ्वीकाय अप्काय यानि 24 दंडक के जीवों को देव
छू सकता है और अपनी इच्छानुसार प्रवृत्ति करा सकता है । इसको यक्ष प्रवेश उन्माद कहते हैं। दूसरा मोहनीय कर्म का उन्माद भी होता है । देव पृथ्वीकाय-पत्थर में प्रवेश करें तो पत्थर भी चलने और नाचने लगता है । वनस्पति काय में प्रवेश करें तो
वनस्पति काय का रंग, आकार बदल जाते हैं। माना T.V. का Remote Controll 40. कंदमूल में कितने जीव हैं हो।
प्रत्येक को एक राई के दाने जितना बड़ा कर दें तो पूरा लोक भर जाए तो भी न समाए
।14 राजलोक ही नहीं, ऐसे अनंत राजलोक में भी न समाए। (जीवाभिगम सूत्र) 41. सिद्ध क्षेत्र प्राप्त करने का पासपोर्ट कौन सा है ? समकित -
सम्यग्दर्शन सिद्धक्षेत्र में Reservation करा देता है । परन्तु पुरुषार्थ के बिना परमात्मा नहीं बना जाता । प्रबल पुरुषार्थ से अंतर्मुहूर्त में सिद्ध हो जाता है और उ. काल अर्ध पुद्गल परावर्तन काल भी हो सकता है । यदि सिद्धत्व के पुरुषार्थ में प्रमाद
हो जाए तो । (पन्नवणा सूत्र : पद - 18) 42. शकेन्द्र देवराज का दूत ‘हरीणगमैषी देव' देवलोक में डॉक्टर के समान देव है । एक
माता के गर्भस्थ जीव को बाहर निकाल कर दूसरी माता के गर्भ में रखना, ऐसा करने में पेट की चीर फाड़ नहीं होती; माता को या गर्भस्थ जीव को मालूम तक नहीं पड़ता। अरे ! गर्भ को, माता के नख या रोमराजी से भी बाहर निकाल ले तो वह जरा भी
वेदना के बिना ही होता है । (पन्नवणा सूत्र : पद - 18) 43. नरक और नरक के जीव :- असह्य दुःख, 10 प्रकार की क्षेत्र वेदना, नरक के जीवों
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