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________________ आध्यात्मिक मंथन - सुवाक्यों * जीवन में चिंता नहीं, चिंतन करना चाहिए । साँप के साथ सो सकते हैं, पाप के साथ कभी नहीं । * लक्ष्मी का व्यय तीन प्रकार से होता है ; दान से, भोग से, नाश से । * काले वरसे तो मेघ नहीं तो मावठा । * दृष्टि पड़े वहाँ दोष है, पढ़ (पैर) पड़े वहाँ पाप है । दूसरों के अधिकारों को छिनना वह अदत्त है । * धर्म पुरुषार्थाधिन है, लक्ष्मी भाग्याधिन है । * खड़े-खड़े निकलो नहीं लेटा कर निकालेगें । संत खड़े-खड़े संसार छोड़ते हैं । चेतन काया को हमेशा साथ देता है, क्या काया चेतन को साथ देती है ? काया तो चेतन को नचाती है । * आत्मा के शुद्ध पर्याय को धारण करे वह 'सत्य ं । आराधना ( स्वाध्याय) न करने से विराधक बन जाते हैं । * ज्ञान के अथवा ज्ञानी के शरण में रहो । * अहिंसा प्रत्येक धर्म का केन्द्र बिन्दु है । जीवन में अगर अहिंसा न रहे तो एक भी व्रत नहीं रहता । ** तप में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ एवं अभयदान दान में । मनुष्य भव में ही 'अवेदि' बना जा सकता है। याने कि स्त्रीवेद, पुरुषवेद या नपुंसक वेद को टाला जा सकता है । * विकार भाव में धिक्कार वचनों से आत्मा को बचाना चाहिए । * महाआरंभ - महापरिग्रह । * संसार में किसी द्रव्य की शक्ति नहीं है कि वह हमें पकड़ सके । * लाहा लोहो पवड्डई - लाभ से 'लोभ- कषाय' बढ़ते हैं । * प्रतिक्रमण - भूतकाल का, संवर-वर्तमान का, प्रायश्चित-भविष्यकाल का । वीर क्षमा से हुए, बल से नहीं । * भविष्य नहीं, वर्तमान को सुधारो । * निमित्त को निमित्त समझो, कारण नहीं । 15
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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