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प्रतिक्रमण
दृष्टि अंतर्मुख करी त्यां माझं अनशन क्लोवायु
सुषुप्त मनना अतीत नी केडी पर ऊगी चूक्यांतां पुष्पो अति, विष्यनां !
झरतुं हतुं माहे थी अप्रशस्त 'राग'नु मीण
जे नीतरतुं रघु नयनेथी, खारूं पीण .... गर्हानी राखणी कर्यु पारj
चही दृष्टिमां उद्योत अने पा... पा... पगली, समकिन कने ....!!
सितम्बर - 99
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