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________________ GOGOGOG@GOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©GOGOG@GOGOGOGOG 1ले गुणस्थान में मिथ्यात्व और अविरति दोनों होते हैं (प्रमाद कषाय-योग होते हैं) 2,3,4 गुणस्थान में अविरति है किन्तु मिथ्यात्व नहीं (प्रमाद - कषाय योग होता है) 5,6 वें गुणस्थान में देश विरति एवं फिर अविरति नहीं (प्रमाद-कषाय-योग होता है) 7वें गुणस्थान में प्रमाद रुक जाता है (कषाय एवं योग भी होता ही है) 8,11,12 कषाय 12वें में रुक जाता है, योग ही बाकी रहता है। 13, 14 सयोगी में अयोगी होने पर योग भी क्षय हो जाता है । योग का निरोध यही योग का संवर है। 14. अयोगी केवली :- सर्व व्यापारी रहित, क्रिया रहित, केवली अयोगी होते ही शरीर छूट जाता है एवं परमात्मा, अमूर्त, अरुपी, केवल ज्योति स्वरुप केवल्यधाम को प्राप्त हो जाती है। * गुण - आत्मा की चेतना - सम्यक्त्व, चारित्र, वीर्य आदिशक्तियाँ। * स्थान - अवस्थाएँ, शक्तियों की शुद्ध रुप तरतम भाव वाली स्थितियाँ। गुण स्थान की कल्पना मुख्य रुप से मोहनीय कर्म की विरलता एवं क्षय के आधार से करने में आयी है। मोहनीय कर्म की दो मुख्य शक्तियाँ :- 1. दर्शन मोहनीय - आत्मा के सम्यक्त्व गुण को आवृत (आवरण-ओट में) करने वाला (तत्व रुचि या सत्य के दर्शन न हो)। ___ 2. चरित्र मोहनीय - आत्मा के चरित्र गुण को रोके (सक्यक्त्व के अनुसार प्रवृत्ति करे किन्तु स्वरुप का लाभ न होना। दर्शन मोहनीय का बल कम होने के बाद ही चारित्र मोहनीय क्रमश: निर्बल हो जाता है, जब तक मोहनीय शक्ति तीव्र हो तब तक दूसरे आवरण भी तीव्र रहते हैं। 1. मिथ्यादृष्टि : सत्य विरुद्ध की दृष्टि । दर्शन मोहनीय की प्रबलता के कारण तत्व रुचि प्रकट ही नहीं होती। ७०७७०७0000000000044150090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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