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________________ 2. 11वें गुण स्थान से पतन होती आत्मा प्रथम गुणस्थान पर जाते हुए मध्य में बहुत कम समय के लिए तत्व रुचि का किंचित आस्वादन होने से सास्वादन गुण स्थान कहा है । 3. झूले में झूलने जैसी डांवाडोल स्थिति । सर्वथा सत्य दर्शन नहीं, मिथ्या दृष्टि नहीं, संशयात्मक स्थिति वाली आत्मा । 4. यहां दर्शन मोहनीय या तो लगभग शमन हो जाता है या क्षीण हो जाता है । आत्मा सम्यग्दर्शन कर सकती है । चारित्र मोहनीय की सत्ता सविशेष होने से विरति ( त्यागवृत्ति) उदय नहीं होती (इस कारण से इस अवस्था को 'अविरति सम्यग्दर्शन' कही है) 5. देश विरति (संसारी) : सत्यदर्शन के बाद अल्प अंश में भी त्यागवृत्ति का उदय । चारित्र मोहनीय की सत्ता घटती जाती है । 6. सर्वविरति (साधु) :- - त्यागवृत्ति संपूर्ण रुप में हो, परंतु बीच में प्रमाद (स्खलन) संभव है । 7. अप्रमत्त संयत :- जहां प्रमाद किंचित भी संभव नहीं हो वह अवस्था । विस्मृति, सूक्ष्म प्रमाद, अनुपयोग होता है । 8. अपूर्वकरण या निवृत्ति बादर : पूर्व में नहीं अनुभव की हुई आत्म शुद्धि । अपूर्व वीर्योल्लास । 9. अनिवृत्ति बादर :- चारित्र मोहनीय कर्म के शेष अंशों को शमन करने का काम चालू रहता है । 10. सूक्ष्म संपराय :- लोभ रुप में उदित मोहनीय कर्म का सूक्ष्म अंश । 11. उपशांत मोह :- सूक्ष्म लोभ रुप पूरा ही शमन हो जाए। मोहनीय का सर्वांश उपशम या दर्शन मोहनीय का क्षय संभव है किन्तु चारित्र मोहनीय का उपशमन ही होता है । इसीलिए मोह का पुन: उद्रेक होते ही पतन - प्रथम गुणस्थान तक । 12. क्षीण मोहनीय :- दर्शन मोहनीय एवं चारित्र मोहनीय का संपूर्ण क्षय । यहां से पतन संभव नहीं । सर्वज्ञता प्रकट होती है । 442
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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