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* उपशम सम्यक्त्व - मिथ्यात्व का i.e. दर्शन मोहनीय का कोई पुद्गल का विपाकोदय या प्रदेशोदय, कोई भी उदय नहीं होता । (विपाकोदय : फलप्रद उदय, प्रदेशोदय : उदय से आत्मा पर प्रभाव नहीं होता) यह शुद्ध आत्म परिणाम रूप है।
* क्षयोपशम सम्यक्त्व - प्रदेशोदय गत पुद्गलों का क्षय एवं उदय में नहीं आए हुए ऐसे पुद्गलों का उपशम । इस प्रकार क्षय एवं उपशमन दोनों प्रकार का समकित है । यहाँ सम्यक्त्व मोहनीय पुद्गलों का विपाकोदय होता है।
जब तीन दर्शन मोहनीय एवं 4 अनंतानुबंधी कषाय, इन 7 पुद्गलों का क्षय होता है, तब क्षायिक समकित प्रकट होता है।
* चारित्र मोहनीय के 25 प्रकार - क्रोध, मान, माया, लोभ (4-4) अनंतानुबंधी - अति तीव्र कषाय, अनंत दुःख रुप, मिथ्यात्व के उद्भावक।
अप्रत्याख्यानी - अ = अल्प, अल्प प्रत्याख्यान को रोकने वाला कषाय, वह अप्रत्याख्यानावरण, देश विरती को रोकता है।
प्रत्याख्यानी - प्रत्याख्यानी को रोकने वाला कषाय, सर्वविरति को रोके। संज्वलन - वीतराग चारित्र को रोकने वाला कषाय ।
9 नोकषाय - हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा (घृणा), स्त्री वेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद।
त्रिविधि दर्शन मो.+अनंतानुबंधी 4 कषाय का उपशम = उपशम सम्यक्त्व । त्रिविध दर्शन मो. + अनंतानुबंधी 4 कषाय का क्षय = क्षायिक सम्यक्त्व ।
जीव 8वें, 9वें गुणस्थान में, शेष 21 में से 20 मोहनीय कर्म प्रकृतियों को उपशम कराती है अथवा क्षय करते हैं।
10वें गुणस्थान में सूक्ष्म लोभ को - उपशमाकर 11वें गुणस्थान में आती है। 10वें गुणस्थान में सूक्ष्म लोभ को - क्षय कर 12वें गुणस्थान में आती है।
आत्मा जैसे-जैसे विकास प्राप्त करती है वैसे-वैसे क्रमश: कर्मबंध के हेतु कम होते जाते हैं - मिथ्यात्व, अवरिति, प्रमाद, कषाय, योग। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 440 GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe