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________________ GOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOGOGOGOGOGOG श्रावक के धर्म - 5 अणुव्रत। 1. स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत : प्राण का अतिपात :- 10 प्राण :- मन, वचन, काया, 5 इन्द्रिय, आयुष्य एवं श्वासोच्छ्वास, प्रमाद या दुर्बुद्धि से प्राण को मारने के लिए तकलीफ पहुंचावे, यह हिंसा है। प्रमत्त योगात - प्राणव्यपरोपणं हिंसा (तत्वार्थ 7-8) __ प्रमाद से अर्थात् राग-द्वेष वृत्ति से प्राणि के प्राण लेना हिंसा है । प्रमत्तयोग यह भाव हिंसा है, प्राण का नाश, द्रव्य हिंसा है । संकल्प से निरपराधी, आरंभ से, उद्योग से, विरोधी का वध हिंसा, ऐसे 4 प्रकार की हिंसा स्थूल प्रकार की गिनी जाती है। 2. स्थूल मृषावाद विरमण - विश्वासघात तथा गलत सलाह देना महापाप कहा है। 3. स्थूल अदतादान विरमण, 4. स्थूल मैथुन विरमण, 5. परिग्रह परिमाण, 6.दिशाव्रत, 7. भोगोपभोग परिमाण, 8. अनर्थदंड विरमण, 9. सामायिक व्रत, 10. देशावगासिक व्रत, 11. पौषधव्रत, 12. अतिथिसंविभाग। 6. सर्वविरति - प्रमत्त संयत :- महाव्रतधारी साधु जीवन के लिए यह गुणस्थान है । सर्व विरति होने पर भी प्रमाद है। उचित भोजन, उचित निद्रा, मंद कषाय प्रमाद में नहीं गिना जाता । तीव्रता धारण कर लेती है ये स्थितियाँ तब प्रमाद गिना जाता है । चौथा गुण स्थान, चारित्र मोह को निर्बल बनाना पड़ता है । छटठे गुण स्थान के जीव संसार त्यागी होते हैं। 7. अप्रमत संयत :- साधु जब अप्रमत्त बनते हैं, तब 7 गुणस्थान में आते हैं । स्थूल प्रमाद पर विजय प्राप्त कर लेते हैं । सूक्ष्म प्रमाद (विस्मृत, अनुपयोग आदि) अभी तक बाधक होता है । उस पर विजय प्राप्त कर एवं पतित होते हुए छठे गुण स्थानक पर आ जाता है, इस प्रकार उतार - चढ़ाव अवगेह चलता रहता है। साधुरुप योद्धा प्रमाद रुप शत्रु के साथ जय-पराजय करता रहता है। 8. अपूर्वकरण:-पूर्व में न किए ऐसे करण, अध्यवसाय सावधान रहकर अधिक अप्रमत्त बनते हुए 8वें गुण स्थान में चढ़ जाते हैं । इस गुण स्थान से आत्मा, विशुद्ध अध्यवसायों के GUJJJJJJJJJJJJC 437 TUJJJJJJJJJJ
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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