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900900909009009009090090090090GO909009009090900905 * 5 समिति
ईर्या :- सूर्य प्रकाश में भूमि देखकर विहार करना। भाषा :- प्रत्येक माह स्वाध्याय में आओ, सत्संग में भाग लो एवं आत्मा का कल्याण करो (स्व और पर के हितकारी वचन, गुणों से युक्त वह भाषा समिति) ऐषणा :- गुरु महाराज को उत्कृष्ट भाव से वहोराना (दोष रहित आहार को देखकर उत्कृष्टता से ग्रहण किया वह ऐषणा समिति)
आदान निक्षेप :- सामायिक में आसन बिछाते समय प्रथम चरवला से भूमि प्रमार्जन कर फिर स्थान ग्रहण करना। उत्सर्ग :- आचार्य ने शिष्य को भूमि प्रमार्जन कर मल-मूत्रादि परठने को कहा। संवर: 6 कारण - धर्म : 10 - अनुप्रेक्षा : 12 (1) 3 गुप्ति, (2) 5 समिति, (3) 10 धर्म, (4) 12 अनुप्रेक्षा, (5) 22 परिषह जय और (6) 5 चारित्र।
योग से बंध होता है एवं योग से ही संवर-निर्जरा होती है । इस सिद्धांत आदि को ज्ञानश्रद्धायुक्त निग्रह (निवृत्ति) प्रवृत्ति वह गुप्ति । समिति में सम्यक् प्रवृत्ति ही आती है (शास्त्रोक्त, विधि अनुसार)
ईर्या, भाषा, ऐषणा, आदान निक्षेप, उत्सर्ग। 10 धर्म - उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच (अनासक्ति), सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचन्य (ममत्व का अभाव), ब्रह्मचर्य ।
17 प्रकार का संयम :- 5 अव्रतों का त्याग, 5 इंद्रियों पर विजय, 4 कषाय त्याग, मन, वचन, काया से निवृत्ति (3)
12 अनुप्रेक्षा :- अनु = आत्मा का अनुसरण, प्रेक्षा = देखना।
अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आश्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधि दुर्लभ, धर्म स्वाख्यात।
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