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धर्म स्वाख्यात भावना : सम्यगदर्शन आदि विचारणाओं का चिंतन । श्रद्धा, गुण प्रगटे, प्रकट हुई श्रद्धा विशुद्ध बने, मोक्ष मार्ग से गिरने का डर दूर हो, उल्लास बढ़े।
12 भावनाओं का चिंतन, यही प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, आलोचना एवं समाधि । उत्तम धर्म पालन, परिषहों को जीत लेती है। बोधि दुर्लभ भावना :निगोद से मोक्ष की यात्रा का मंथन । दुर्लभ ऐसा मनुष्य भव। दुर्लभ ऐसी जिनवाणी का श्रवण ।
निगोद
निगोद व्यवहार राशि
अव्यवहार राशि
निगोद पृथ्वीकाय आदि
सम्पूर्ण ब्रह्मांड में है। कारण :- साधारण नाम कर्म का उदय, द्रव्य इंद्रिय 1, भाव इंद्रिय 5, अंतमुहुर्त में 66,336 भव कर चुके।
नित्य निगोद :- अभी तक बेइन्द्रिय नहीं हुए। ईतर निगोद :- निगोद में से बाहर आकर फिर निगोद में जाने वाला जीव ।
चारित्र : 5 - बाह्य आभ्यंतर तप : 6 5 चारित्र :- सामायिक, छेदोपस्थाप्य, परिषह-विशुद्धि, सूक्ष्म संपराय, यथाख्यात, चारित्र।
6 बाह्य तप - अनशन, उणोदरी, वृत्तिसंक्षेप, रसत्याग, संलीनता, काय क्लेश।
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