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है, अचाक्षुष है ।
चार स्पर्श एवं सूक्ष्म परिणामी होते हैं वे सूक्ष्म स्कंध हैं । आठ स्पर्श तथा बादर परिणामी बादर स्कंध है, बादर स्कंध ही चाक्षुष है ।
परमाणु मात्र कारण रुप होते हैं, स्कंध होते कार्य बन जाता है । स्कंध कारण एवं कार्य दोनों रूप में होता है, स्कंध टूटने पर परमाणु बनते हैं ।
पुद्गल में प्रति क्षण परावर्तन होता रहता है, परिवर्तन भाव अनादिकाल से अनंतकाल तक होता रहता है और होता रहेगा । पुद्गल का परिवर्तन भाव अवश्यंभावी होता है ।
पुद्गल जीव के आश्रित हैं, जीव कर्मों के आश्रित या आधीन होने से नियाणा के अधीन बन जीव मात्र स्वयं के योग पुद्गलों को ग्रहण करता है, राग-द्वेषयुक्त बांधे हुए या बंध गए नियाणा को भुक्ता न करते समय जब परिपक्व हो जाते हैं तब वे जीव को उसी पुद्गल परिवर्तन भाव भाग्य में मिलते हैं ।
दा. त. एक जीवात्मा ने पूर्व भव में किसी जीवात्मा के साथ प्रेम भाव से नियाणा बांधा, उसके परिपक्व होने का समय आ गया । संयमी - सदाचारी - धार्मिक-समताशील - निरोगी अवस्था को भोगने वाले उसके माता-पिता हैं। जिस समय पूर्व भव का शुभ अनुबंध वाला जीव माता की कुक्षि में आने वाला हो, उस समय शुक्र और रज के पुद्गल का, परिवर्तनपरिणमन-संमिश्रण सात्विक ही होता है । तामसिक या राजसिक नहीं होता । मैथुन मात्र में गर्भाधान कराने की क्षमता वाले पुद्गल होते हैं और साथ में माता-पिता सशक्त, समता एवं सात्विक वृत्ति वाले हों तथा मैथुन समय पूर्णत: सात्विकता ही रहे; उस समय तिरोभूत (दूर) न हो, मैथुन कर्म में बलात्कार - र- क्रोध भाव, वैर भाव-भय रास्ता का प्रादुर्भाव होता नहीं, मैथुनकर्ता पिता को आर्त्तध्यान का अभाव हो तो उस समय शुक्र के परमाणु सात्विक भाव में परिणमन करते हैं; जीव स्वाभाविक भाव से गर्भ में प्रवेश करता है । प्रेम भाव तथा सात्विक भाव में बंधा हुआ नियाणा शुक्र या रज के मिश्रण में सात्विक रहता है और जन्म लेकर नियाणा फल भोगता है ।
इसी प्रकार राग-द्वेष युक्त बांधे या बंधे हुए नियाणा का फल भोगने का समय परिपक्व
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