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चला जाता है।
बालवीर्य : :- बाल = मिथ्यादृष्टि, वीर्य ।
बाल पंडित वीर्य :- बाल किंचित अंश में विरति यानि बाल पंडित (देश विरति वाला) पंडित वीर्य : सर्व विरति जीव ।
कर्मबंध होने पर कर्म की प्रकृति, स्थिति, रस एवं प्रदेश इसी समय निश्चित होता है । प्रदेश अर्थात् कर्म के पुद्गल, जीव प्रदेश में जो कर्म पुद्गल ओतप्रोत है, वे प्रदेश कर्म कहलाते हैं, यही कर्म प्रदेशों का अनुभव होता रस वो ही अनुभाग कर्म ।
कर्म प्रदेश का विपाक अनुभवित नहीं होता फिर भी कर्म प्रदेशों का नाश तो नियम से होता ही है । अनुभाग कर्म भुक्तान होते भी हैं और नहीं भी ।
छद्मस्थ मनुष्य केवल संयम से, केवल संवर से केवल ब्रह्मचर्य से एवं केवल प्रवचन माता से सिद्ध-बुद्ध यहां तक कि सर्व दुखों का नाश करने वाला हुआ नहीं, होता नहीं । कारण - सिद्ध-बुद्ध तो अंतकर है, अंतिम शरीरवाला है, वे उत्पन्न ज्ञान दर्शन धर, अरिहंत, जिन केवली होने के बाद ही सिद्ध होते हैं ।
'छद्मस्थ' का अर्थ 'अवधिज्ञान' रहित जीव समझना । मात्र केवलज्ञान रहित को ही 'छद्मस्थ' न समझें (भगवती सूत्र, पृष्ठ 58)।
शुभाशुभ पुद्गल एवं नियाणा
परमाणु - जिसके दो टुकड़े न हो सके वह परमाणु है, Indivisible matter is the
smallest atam which can not be further deivided.
इस परमाणु में वर्ण-गंध-रस एक-एक एवं स्पर्श चार होते हैं । स्निग्ध (चिकना ), रूक्ष (रुखा), शीत और उष्ण । ये चार स्पर्श सूक्ष्म परिणाम वाले अणु में स्कंध ही होते हैं, संपूर्ण संसार के निर्माण का मूल कारण परमाणु है ।
चारों स्पर्श में से स्निग्ध एवं रूक्ष ये दो परमाणु योग्यतानुरुप इकट्ठे होते हैं (मिलते हैं) तब द्वयणुक स्कंध बनते हैं । उसमें दूसरे परमाणु मिलने पर तीन अणु स्कंध बनते हं । ऐसे करते-करते अनंतानंत परमाणुओं का स्कंध सूक्ष्म या बादर परिणाम वाले बनते हैं । बादर परिणाम वाले स्कंध में आठ स्पर्श होते हैं । बादर स्कंध नेत्रों से ग्राह्य है, सूक्ष्म स्कंध ग्राह्य नहीं
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