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आभोग आहार :
पहला देवलोक सौधर्म : (ज. 2 से 9 दिन बाद) से लेकर (उ. 2 हजार वर्ष बाद) बारहवां देवलोक अच्युत : (ज. 21 हजार वर्ष बाद, उ. 22 हजार वर्ष बाद) पृथ्वीकाय के जीव हमेशा आहार के अभिलाषी रहते हैं ।
दो इन्द्रिय जीव असंख्य समय अंतमुहूर्त में इच्छापूर्वक आहार करते हैं ।
छद्मस्थ जीव
छद्मस्थजीव 10 पदार्थों को नहीं जानते ।
1. धर्मास्तिकाय, 2. अधर्मास्तिकाय, 3. आकाशस्तिकाय, 4. शरीर रहित मुक्त जीव, 5. परमाणु पुद्गल, 6. शब्द, 7. गंध, 8. वायु, 9. यह जीव जिन होगा या नहीं ? 10. यह जीव सभी दुःखों का नाश करेगा या नहीं ।
छद्मस्थ :- अवधिज्ञान आदि विशिष्ट ज्ञान रहित जीव ।
* जीव का मोक्ष प्राप्ति का भाव, जब सिर्फ एक पुद्गल परावर्त काल बाकी रहता है तब जागृत होता है । उस काल को चरम पुद्गल परावर्त काल अथवा चरमावर्त काल कहते हैं ।
असंख्य वर्ष
1 पल्योपम
10 क्रो. क्रो. पल्योपम
1 सागरोपम
20 क्रो. क्रो. सागरोपम
1 काल चक्र
अनंत काल चक्र
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1 पुद्गल परावर्तकाल ।
इस चरम पुद्गल परावर्त काल में जीव को मार्गानुसारी, सम्यकदर्शन, श्रावक धर्म एवं साधु धर्म की आराधना के लिए आत्म दृष्टि प्राप्त होती है ।
यदि जैन धर्म की आराधना प्राप्त नहीं होती तो 2000 सागर तक त्रस योनि में रहकर फिर स्थावर योनि में जाना पड़ता है ।
अकाम निर्जरा के कारण अनंतकाल चक्र पूरे होने के बाद त्रस योनि में जीव आता है एवं यदि सम्यक्त्व प्राप्त नहीं हो तो फिर 2000 सागरोपम काल भटकने के बाद स्थावर योनि में
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