________________
कभी भी शून्य से सर्जन नहीं होता और सर्जन का शून्य में विसर्जन नहीं होता । यह त्रिकाल बाधित नियम है ।
आत्मा शाश्वत है उसकी पूर्णता क्या ?
दुनिया पूर्ण शाश्वत है । कोई भी वस्तु का अस्तित्व शून्य में है ही नहीं । एक परमाणु को लाखों वैज्ञानिक बारह माह तक मेहनत करते हैं तो भी उसका विसर्जन शून्य में नहीं कर सकते । यह अटल-सनातन सिद्धांत है । इसलिए आत्मा शाश्वत है ।
जीव योनि सिर्फ 84 लाख ही कही है। उसके सभी पेटा विभाग ले लिये जाएं तो भी अंक असंख्य का ही आता है; परंतु काल तो अनंत है, इसलिए एक योनि में अनंत बार गए बिना मुक्ति नहीं ।
जीवों का आहार
नारकी जीवों का आहार :
आभोग निवर्तित : इच्छापूर्वक का आहार
अनाभोग निवर्तित: अनिच्छा का भोजन
अचित्त आहार करने वाले नारकी जीवों को आभोग निवर्तित आहार अंसख्य समय के अंतमुहूर्त बाद होता है । अनाभोग निवर्तित आहार निरंतर होता है ।
इस अनिच्छा का भोजन प्राय: अनंत प्रदेश, परमाणुवाला, नील वर्ण का दुर्गंधमय, तीखा - कड़वा रसयुक्त, स्पर्श में भारी, कर्कश, ठंडा एवं रूक्ष होता है ।
अपने निकट रहे हुए पुद्गलों को पूरे शरीर से खाता है । जो पुद्गल है उसके असंख्य भाग से खाता है और अनंत भाग का सिर्फ आस्वादन करता है । खाए हुए आहार के परिणाम में पाँच इन्द्रियों में अनिष्टता, अकांतता एवं अनमोज्ञता का ही परिणमन होता है ।
देवों के भोग्य पुद्गल के वर्ण में पीला, श्वेत, सुगंधी, खट्टा तथा मधुर रस युक्त स्पर्श में हलका, कोमल, चिकना एवं उष्ण होता है ।
अनाभोग आहार सदैव (अनिच्छा वाला आहार)
9000 398