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________________ GOGOGOG@GOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©GOGOG@GOGOGOGOG कर मरते हैं, टकराए बिना नहीं मरते । वायुकाय जिस वायु को श्वास एवं उच्छ्वास में लेते छोड़ते हैं, वह निर्जीव है, जड़ है। कायस्थिति :- पृथ्वीकाय तथा वायुकाय स्वयं की कायस्थिति के असंख्य रुप के और अनंतता के कारण मरकर फिर उसी काया में उत्पन्न हो जाते हैं । एकेन्द्रिय आदि चार प्रकार के जीवों की कायस्थिति असंख्य उत्सर्पिणी अवसर्पिणी की है । जब वनस्पति काय जीवों की कायस्थिति अनंत उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी की है । अर्थात् विषय वासना के वश हुआ जीव जो वनस्पति में जन्म लेता है तो अनंतकाल तक वापिस ऊपर नहीं आ सकता। सभी जीव मुक्त हो जाएंगे तो संसार खाली हो जाएगा? नहीं ! कारण कि पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय (षट्काय जीव) जीवों से भरा ये संसार है। इस संसार में त्रसकाय (बे. त्रे. चउ, पंचेन्द्रिय) में नरक, देव, जरायुज, अंडज, पोतज तथा तिर्यंच जीवों की संख्या चराचरा संसार में ये प्रमाण है। सबसे कम त्रसकाय, इससे असंख्यात गुणा तेजस्काय, इससे कुछ अधिक पृथ्वीकाय, इससे और अधिक अप्काय, इससे भी अधिक वायुकाय, इससे अनंतगुणा वनस्पतिकाय जीव है। वनस्पतिकायकाय जीवों के व्यावहारिक एवं अव्यावहारिक भेद : व्यावहारिक :- पृथ्वीकाय आदि जीव । अव्यवहारिक :- निगोद आदि जीव । निगोद के जीव कहाँ रहते होंगे? संसार में असंख्य गोलक हैं । एक-एक निगोद स्थानक में असंख्य निगोद जीव हैं । ये अनंतानंत जीव एक ही स्थान में रहते हैं, ऐसे असंख्य निगोद स्थान हैं, जो एक गोलक में रहते हैं; भवितव्यता के परिपाक से निगोद का जीव अव्यवहार राशि में से बाहर आता है और व्यवहार राशि में प्रवेश करता है। ७०७७०७0000000000039650090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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