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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® हंसने वाला एवं प्रत्येक क्रियाओं में उतावलापन करने वाला 8 प्रकार के कर्मों को बांधता है । सम्यग्ज्ञान, समिति, गुप्ति का निश्चित अभाव होता है एवं इस कारण से छद्मस्थता समाप्त नहीं हो सकती। साधक को पदार्थ कुतुहल न करा सके उसके लिए निष्परिग्रही ही रहने का आग्रह रखने का कारण पदार्थ वैकारिक (विकार भाव में) भाव में खींच न ले जाय। केवल ज्ञानी को हास्य या उतावलापन नहीं होता, केवलज्ञानी को संसार की माया विशेष प्रत्यक्ष होती है (छद्मस्थता से) फिर भी किसी भी प्रकार का पदार्थ हंसी उत्पन्न नहीं कर सकता। क्योंकि इनको मोहनीय कर्म समूल नष्ट हो गए हैं। पृथ्वीकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, निगोद प्र. :- पृथ्वीकाय के कितने शरीर होते हैं ? लेश्या कितनी होती हैं, सम्यग् दृष्टि होते है क्या ? उत्तर :- पृथ्वीकाय के औदारिक, तेजस व कार्मण तीन शरीर होते हैं । लेश्या 4 होती हैं। प्र. :- पृथ्वीकाय सम्यग् दृष्टि होते हैं ? उत्तर :- नहीं ! निश्चित मिथ्या दृष्टि है, ये अज्ञानी जीव होते हैं, दो अज्ञान ही होते हैं एवं केवल काययोगी हैं । (मति अज्ञान-श्रुत अज्ञान) प्र.:- वायुकाय के कितने शरीर ? उत्तर :- चार : औदारिक, वैक्रिय, तेजस एवं कार्मण। प्र.:- पृथ्वीकाय श्वासोश्वास लेते हैं ? उत्तर :- प्रभु महावीर ने कहा कि - पृथ्वीकाय जीव बाहर एवं अंदर के उच्छवास (छोड़ना) को लेते हैं और छोड़ते हैं । ये जीव, भाव से वर्ण-गंध-रस-स्पर्श वाले बाहर के द्रव्य को अंदर श्वास में लेते हैं । एवं वैसे ही द्रव्य बाहर छोड़ते हैं। वायुकाय के श्वासोच्छ्वास : वायुकाय के जीव वायुकाय को ही श्वासोच्छ्वास में लेते हैं और छोड़ते हैं (श्वास = सांस लेना, उच्छ्वास= छोड़ना) अनेक लाख बार मर कर पुन: अन्यत्र जाकर उसी वायुकाय में उत्पन्न होता है । वायुकाय के जीव स्वयं की जाति या परजाति के जीवों से टकरा 909090900909090905090909090395909090909090905090900909090
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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