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“जिनेश्वर देव ने जो कहा यही सत्य है - इस श्रद्धा को स्थिर करना चाहिए।” इससे आत्म दर्शन का लाभ एवं अरिहंत देव की पहचान सत्य रूप में होती है ।
कांक्षा मोहनीय कर्मबंध का कारण प्रमाद व योग है। मुख्य कारण प्रमाद है ।
प्रमाद :- मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, प्रमाद के उत्पादक योग, योग की उत्पत्ति वीर्य से है । (वीर्य = लेश्यायुक्त जीव का मन-वचन-काया रुप साधन युक्त आत्मप्रदेश का परिस्पंदन रुप व्यापार) । वीर्य का उत्पादक शरीर एवं शरीर का उत्पादक जीव दल ।
हंसना अच्छा या बुरा ?
स्वाभाविक हंसना शारीरिक दृष्टि से अच्छा हो सकता है; किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से अच्छा नहीं माना है । कारण :
* अनेक सांसारिक कार्य लाभ एवं हानि तथा राग- -द्वेष से संयुक्त हैं, लाभ होने पर जीव भावुक रुप से मुस्कुराता है । जैसे 5 लाख के लाभ से केस (दावा) मेरे पक्ष में आया तो उसके अनुमोदन करते मुस्कुरा दिए और ऐसा 'अनुमोदन' हो ही जाता है ।
* व्रत में अतिचार न लगे, तो भी हानि या लाभ के मुस्कुराहट अथवा व्यंग्य अध्यात्मिक जीवन में चंचलता लाता ही है ।
* अपने शत्रु पर हमला हुआ - यह जानकर 'कांटे से कांटा निकला' इस न्याय से हंसे बिना (व्यंग्य होते हुए भी) नहीं रहा जाता ।
* कभी राग-वश या कभी द्वेष-वश और कभी कुतुहल के कारण हंसना हो तो उससे आध्यात्म दूषित होता है ।
* हंसना अनिवार्य या स्वाभाविक हो तो भी मन को विचलित करता है, विकथा किए बिना नहीं रहता (स्त्री कथा, देश कथा, राजकथा, भक्तकथा) ।
* हंसने में क्रूरता, वैर भाव, व्यंग, मजाक, निर्दयता, ठगना, शत्रुनाश आदि का आनंद लेश्याओं की गड़बड़ी से होता है ।
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