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संग्रहनय प्रमाण :- क्रोध और मान (आत्मा को अप्रियात्मक होने से) द्वेष रुप है । लोभ और माया (आत्मा को प्रियात्मक होने से) राग रुप है।
यही कथन व्यवहार नय के प्रमाण में ऐसा विश्लेषण करते हैं। माया पर उपघात के लिए प्रयोग किया जाता है, वह द्वेष के अभाव में नहीं बनते । क्रोध और मान तो अप्रियात्मक होने से द्वेष ही हैं, लोभ अर्थ के प्रति मूर्ख के कारण राग है। राग
द्वेष संग्रह नय माया और लोभ
क्रोध, मान व्यहवार नय लोभ
क्रोध, मान, माया ऋजुसूत्र नय मान माया
लोभ क्रोध । अहंकार के दूसरे का स्वार्थ साधना मान-मात्सर्य के उपयोग समय ग्रहण करते समय करते कारण, पराये के में राग प्रिय अत: राग लोभ-राग गुणों के प्रति दोष,
माया पराये को ठगते समय द्वेष,लोभ-शत्रु के देश, भूमि जीतने
के समय द्वेष शब्द नय :- क्रोध और लोभ का समावेश मान और माया में ही हो जाता है । अन्य को हानि पहुँचाते समय माया का उपयोग, स्वयं का मान, क्रोध के समान है एवं इसके प्रति लालच लोभ है।
जिस समय कर्म बंधते हैं उसी समय बंधाते कर्म वर्गणा के पुद्गल ग्रहण करता यह जीव आनाभोगिक वीर्य (आत्मिक परिणाम) द्वारा ज्ञानावरणीय कर्म आदि सभी कर्मों को अलग-अलग स्थापित करता है।
जिस प्रमाण में आहार लेते हैं, तभी ही उस खाए हुए आहार में से कुछ पुद्गल रक्त के लिए, मांस के लिए हड्डियों के लिए, मज्जा के लिए शुक्र धातु के लिए निर्णीत हो जाता है।
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