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* देश विरति और सर्व विरति चारित्र वर्तमान भव तक ही होता है तो वह भाग्यशाली जीव देवगति में ही जाते हैं।
* तपस्या भी इह भावक होती है, आने वाले भव्य में साथ नहीं जाती।
भाग्य से ही सब कुछ मिलता है, तथा मोक्ष भी भाग्य बिना नहीं मिलता । True or False?
False :- जैन धर्म की यह मान्यता नहीं है , अर्थ, काम, धर्म, मोक्ष, पुरुषार्थ की आराधना के लिए उत्थान, कर्म, बल, वीर्य एवं पुरुषार्थ अत्यन्त और अनिवार्य आवश्यकता जैन शासन मानता है।
आत्मा को स्वयं ही व्यवहारिक अर्थ तथा काम प्राप्त करने के लिए उत्थान करना पड़ता है, उसके लिए शारीरिक क्रियाएँ करते हैं, कुछ बल का उपयोग करते हैं तथा वीर्य प्रकट करते हैं और अंत में पुरुषार्थ करते हैं और उसके बाद ही पदार्थ प्राप्त करने के लिए सिद्ध होते हैं। भाग्यवाद अकेला काम नहीं आता।
गणधर - ये जीव 8 प्रकार से कर्म बंध कैसे करते हैं ?
भ. महावीर - जब ज्ञानावरणीय कर्म का उदय रहता है, तब दर्शनावरणीय कर्म का अनुभव नियमत: होता है, इसके विपाक में दर्शन मोहनीय कर्म भी होता है, तब यह जीव 8 प्रकार से कर्म बंध करता है।
अतत्व को तत्व रुप में मानना और तत्व को अतत्व मानना मिथ्यात्व ही है। शास्त्रीय वचन है कि मोहनीय कर्म के उदयकाल में तथा उदीरणाकाल में उत्तर कर्म यानि नया कर्म जीव बांधता ही है।
मिथ्यात्व के बीज में अविरति, कषाय, प्रमाद, योग के अंकूर हर समय उत्पन्न होते रहते हैं। जीव का जैसा अध्यवसाय वैसा ही पुदगल कर्म से परिणत होते हैं और पद्गल का जैसा उदय होता है वैसी ही जीव की परिणति होती है।
गौतम :- कितने स्थानों द्वारा ज्ञानावरणीय कर्म बंध होते हैं ? भ. महावीर :- हे गौतम ! राग-द्वेष ये दो कारण से कर्म बंध होते हैं।
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