________________
कर्म
वेदनीय
गौत्र
GOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG
आयू कर्म :- सबसे कम प्रदेश। नाम कर्म :- इससे कुछ अधिक प्रदेश । ज्ञाना. - दर्शना - अंतराय कर्म :-इससे भी अधिक प्रदेश मोहनीय - वेदनीय :- सबसे अधिक प्रदेश । कर्मों की स्थिति :उत्कृष्ट
जघन्य ज्ञाना. दर्शना. 30 क्रो.क्रो.सा.
अंत:मुहूर्त 30 क्रो. क्रो. सा.
12 मुहूर्त मोहनीय 70 क्रो. क्रो. सा.
अंत: मुहूर्त आयु 33 सागरोपम
अंत: मुहूर्त नाम 20 क्रो. क्रो. सा.
8 मुहूर्त 20 क्रो. क्रो. सा.
8 मुहूर्त अंतराय 30 क्रो. क्रो. सा.
अंत: मुहूर्त वेदना और निर्जरा : द्रव्यानुयोग वेदना एवं निर्जरा का सहचर्य :- वेदना मात्र निर्जरा युक्त ही होती है और निर्जरा मात्र वेदनायुक्त ही होती है । किए कर्म भुक्तान करना ही है, उसको वेदना कहते हैं और जो भुक्तान हो चुके हैं (कर्म) वे आत्मप्रदेश से पृथक हो जाते उसको निर्जरा कहते हैं।
मोह वासित आत्मा बिस्तर में पड़े-पड़े हाय-हाय करते कर्म भोगते हैं, जबकि ज्ञानवासित आत्मा हंसते-हंसते कर्म भुक्तान करती है।
प्रतिभा सम्पन्न मुनिराज कर्म की निर्जरा के लिए जान बुझकर विशेष कष्ट सहन करते हैं, इसलिए उनको वेदना भी ज्यादा और निर्जरा भी ज्यादा ।
इहभविक, पारभविक, उभयभविक :- भगवती सूत्र भाग 1, पृष्ठ 24
इस भव में प्राप्त किया हुआ सम्यग्ज्ञान (या सम्यक् दर्शन) आने वाले भव में साथ न जाए - यह इह भव, भवांतर में साथ जायें वह पारभविक एवं 3-4 भव तक ज्ञान संस्कार बने रहें वह उभयभविक।
७०७७०७0000000000039090090050505050505050605060