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* प्रदेश और अनुभाग :
प्रदेश अर्थात् कर्म पुद्गल, जीव के प्रदेश में कर्म पुद्गल ठूंस-ठूंस कर भरे हैं वे प्रदेश कर्म कहलाते हैं, और वे ही कर्म प्रदेश का अनुभव कराता रस एवं तद्रुप जो कर्म है उसका नाम अनुभाग कर्म । इन दोनों में प्रदेश कर्म का भुक्तान निश्चित है । कर्म प्रदेश का विपाक अनुभव नहीं होता, फिर भी कर्म प्रदेश नियम से नष्ट हो जाते हैं । अनुभाग कर्म भुक्तान होता है और न भी होता है ।
पुद्गल भूतकाल में थे, वर्तमान में है एवं भविष्यकाल में भी जरूर रहेगा, पुद्गल का अर्थ परमाणु के समान किया गया है ।
भगवान ने फरमाया कि - हे गौतम! पुद्गल परमाणु तीनो काल में शाश्वत् है, क्योंकि जो सत् होता है वह क्षेत्र ओर काल को लेकर तिरोभासी रूप में अर्थात् रूपांतर अवस्था प्राप्त कर सकता है । परन्तु समूल नष्ट नहीं हो सकता । मिट्टी की मटकी बनती है, जब फूट जाती है तो ठीकरे के रूप में हो जाती है, समय निकलते मिट्टी द्रव्य रूप में परिणित हो जाती है - कारण - मिट्टी द्रव्य, ‘सत्' है, सत् यानि सम्पूर्ण नष्ट नहीं होती । दीपक का प्रकाश एवं अंधकार दोनों, जैन दर्शन में पुद्गल द्रव्य रुप माना है। किसी भी समय पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और जीव सर्वथा नष्ट नहीं होते । जीव तथा पुद्गल के बिना संसार भी नहीं और संसार भी जीव एवं पुद्गलो से खाली नहीं ।
पुद्गल का चमत्कार :- उड़द की दाल मन ललचाकर आसक्ति जगाती है, जीव इन्द्रिय के भोग तथा लालच को जीवन का सर्वस्व मान बैठे तब पुद्गल पदार्थ चमत्कार बताने को तैयार रहता है ।
पुद्गल छोड़ने के नहीं हैं । उसके प्रति का लालच छोड़ने का है । स्त्री को छोड़ना नहीं उसके प्रति का दुराचार छोड़ दो । श्री मंताई या सत्ता छोड़ने की नहीं । उसके प्रति रही साध्य 1 भावना त्याग कर साधन भाव पैदा करने का है ।
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