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आठों ही आत्माएँ परस्पर संबंधित हैं। द्रव्यात्मा कषायात्मा होती भी है, न भी होती है। परन्तु कषायात्मा नियम से द्रव्यात्मा होती है । मोहकर्म से घिरी आत्मा नियम से कषायात्मा होती है । सिद्धात्मा योग बिना होने से योगात्मा नहीं किन्तु द्रव्यात्मा है ही । योगात्मा है वह भी नियम से द्रव्यात्मा है, सम्यग् दृष्टि जीव ज्ञानात्मा है, सिद्ध के जीव ज्ञानात्मा है। और नियम से द्रव्यात्मा होती ही है। केवली जीव उपयोगात्मा है। ____ 1. चारित्रात्मा सबसे कम और संख्यात है, 2. ज्ञानात्माएँ अनंत हैं, सिद्ध एवं समग्र दृष्टि की अपेक्षा से, 3. उससे अनंतगुणा कषायात्मा 4. उससे विशेषाधिक योगात्मा, अयोगी की अपेक्षा से वीर्यात्मा विशेष अधिक, उपयोगात्मा, द्रव्यात्मा, दर्शनात्मा संख्या समान है।
माकंदी पुत्र अणगार के प्रश्न
भगवती सूत्र सार : भाग - 3 राजगृही नगर के बाहर ‘गुणशील' नामक चैत्य उद्यान था। भगवान महावीर नगरी में पधारे । समवसरण की रचना की गई, पर्षदा आई धर्मोपदेश दिया।
उस काल, उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के ये माकंदी पत्र अणगार थे, स्वभाव से भद्रपरिणामी, उपशांत, क्रोध-मान-माया-लोभ को क्षीण करने वाले, मार्दव-आर्जव गुण को आत्मसात करने वाले, गुरु की आज्ञानुसार संयम मार्ग पर चलने वाले, विनय-विवेक से परिपूर्ण पर्युपासना करते थे। वे मुनि समवसरण में आकर वंदन-नमन कर प्रश्न पूछने लगे:
स्थावर जीव मनुष्य अवतार प्राप्त कर मोक्ष जाते हैं ?
हे प्रभु ! पृथ्वीकाय, अप्पकाय एवं वनस्पति काय के जीव कापोत लेश्या में रहते हए - वहां से मरकर सीधे मनुष्य अवतार को प्राप्त कर सकते हैं क्या ? अंत में घाती कर्मों का नाश कर, केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में जा सकते हैं ?
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