________________
©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® अनंत शक्ति, ज्ञान, दर्शन रूप हैं । असंख्य अशुद्धि के मध्य आठ शुद्ध प्रदेश नगण्य बन गए हैं। आठ प्रदेश Passive हो गए हैं । इसको एक्टिव करने वाला ग्रंथ है 'आगम' । शुद्ध होने लग जाए तब सिद्धि निकट आ जाती है । आगम मोक्ष दिलाता है।
आत्मा के 8 भेद गौतम स्वामी महावीर प्रभु को प्रश्न पूछते हैं कि - हे भंते ! आत्मा के कितने प्रकार हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में स्यादवाद का प्ररुपणा की करने वाले भगवान महावीर ने पर्यायास्तिक नय की अपेक्षा से आत्मा के 8 भेद कहे हैं। वे इस प्रकार हैं :
1. द्रव्यात्मा, 2. कषायात्मा 3. मन-वचन-काया रुप योगात्मा, 4. उपयोगात्मा, 5. ज्ञानात्मा, 6. दर्शनात्मा, 7. चारित्रात्मा, 8. वीर्यात्मा ।
विभिन्न पर्यायों को लेता जाय एवं छोड़ता जाय व द्रव्यात्मा, अथवा कषायादि पर्यायों को गौण करता है तब शुद्ध द्रव्य रुप स्वयं के स्वभाव को प्राप्त की हुई आत्मा वह द्रव्यात्मा है।
द्रव्य और पर्याय दोनों तत्व पदार्थ मात्र में रहे हुए ही हैं, इसलिए दोनों दृष्टि से देखे बिना मुक्ति नहीं । एक दृष्टि से द्रव्यास्तिक नय की। दूसरी पर्यायास्तिक नय की । आत्मा नित्य है, यह भाषा व्यवहार द्रव्य की दृष्टि से सत्य है।
आत्मा अनित्य है, यह भाषा व्यवहार पर्याय की दृष्टि से सत्य ही है । इस प्रकार दोनों प्रकार से भाषा व्यवहार सापेक्ष भाषण है, जो सर्वथा सत्य है।
आत्मा नित्य ही है या आत्मा अनित्य ही है, यह निरपेक्ष भाषण असत्य है, भगवान ने ऐसे व्यवहार को सर्वथा असत्य एवं प्रपंचयुक्त कहा है, कारण कि इससे संसार के क्लेश, संघर्ष वितंडावाद पैदा होता है।
दुनिया खूबसूरत है, हमें जीना आया नहीं, हर चीज में नशा भरा है, हमें पीना आया नहीं।
७०७७०७00000000000368509090050505050505050605060