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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® आगम में मोक्ष मार्ग का निर्देश श्री नम्र मुनि लिखित लेख से उद्धृत जगत के 80% जीव दिशा बिना की दौड़ वाले हैं संसार में रह कर कितनी ही गति या प्रगति करें किन्तु वह टेम्पररी ही होती है क्योंकि वह लक्षविहीन होती है। जीवन टेम्पररी है, जीव परमानेन्ट है (जीवन अस्थिर है, जीव स्थिर है)। आत्मा मूल रूप से सभी की समान है, आत्मा की दृष्टि से सभी आत्मा समान क्षमतावाली है, कोई फर्क न होते हुए भी बहुत फर्क है। भवोभव से अपने जीवन को दिशा देते रहे हैं, भगवान ने उस भव में जीव को दिशा दी थी । जीवन की दिशा बार-बार बदलती रहती है । महावीर ने जीवन की दिशा निश्चित की और वह दिशा एक ही थी एवं दशा भी एक ही थी। महावीर की दिशा थी - मैं अपने को पहिचानता हूँ, मैं मुझ से मिलूँ। हम नित्य जिसे मिलते हैं, वह मैं हूँ ही नहीं । जिससे मुझे मिलना है, उससे आज तक मैं मिला ही नहीं। जो स्वयं से मिलता है, उसे दूसरे से मिलने का कुछ रहता ही नहीं । जो स्वयं से मिलता नहीं है वह जगत सभी को मिलने जाता है । संसार में से, जगत में से जो कुछ मिलता है वह तो मिला हुआ ही है, और जो मिला हुआ है उसे तो हमेशा खोना है। मैं मुझसे मिलूँ, मेरे अंतर में से कुछ प्राप्त करूं । मुझसे प्राप्त करूं, जिससे सम्पूर्ण जगत प्रकाशित करूं, ऐसाबोध जहाँ से मिले उस ग्रंथ का नाम ‘आगम', आगम अगम को एक्टीव कर देता है। अगम :- इन्द्रियों से जिसको गम ही न पड़े। 8 रूचक प्रदेश । आत्मा जब संपूर्ण शुद्ध हो गई तब महावीर भगवान बने । अभी भी हमारी आत्मा के असंख्य अशुद्ध प्रदेशों के मध्य, शरीर के मध्य भाग में आठ ऐसे प्रदेश (पार्टिकल्स) हैं, जो संपूर्ण शुद्ध हैं, (रूचक प्रदेश)। ये सिद्ध भगवान के जैसे ही रूचक प्रदेश हैं । 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGQ 367 GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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