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पांचवा अंग : मैया भगवती सूत्र : यह दाहिनी जंघा के समान है ।
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इसको विवाह पन्नति भी कहते हैं । इसमें 36,000 प्रश्न गौतम स्वामी ने पूछे और भगवान ने उतने ही उत्तर उनको दिए । अपने प्रिय शिष्य का संबोधन - 'हे गौतम ! मेरे अंतेवासी ! ऐसे स्नेह भरे शब्द से संबोधित करते थे । गौतम स्वामी कितने भाग्यशाली थे । कितने विवेक-विनय और गुरुभक्ति में लीन होंगे। मेरे प्रभु की आज्ञा - यही मेरा जीवन और यही मेरा प्राण है । ऐसे गुणों के प्रभाव से वे भगवान के अंतेवासी बने होंगे। गुरु को अर्पण हो जाए उसे तर्पणता (तृप्ति) मिलती है ।
छठा अंग : ज्ञाता सूत्र : यह बांयी जंघा समान है ।
सातवां अंग : उपासक (श्रावक) दशांग ( 10 ) सूत्र : यह दाहिने कंधे समान है ।
आठवां अंग : अंतगढ़ सूत्र : यह बांये कंधे समान है ( केवलज्ञान बाद तुरंत सिद्ध होने
वाले)
नवमां अंग : अनुत्तरोपपातिक सूत्र : यह दाहिनी भुजा समान है । दशवां अंग : प्रश्न व्याकरण सूत्र : यह बांयी भूजा समान है । ग्यारहवां अंग : विपाक सूत्र : यह गरदन के समान है । बारहवाँ अंग : दृष्टिवाद सूत्र : यह मस्तक समान है ।
12 अंगों का संक्षिप्त विवरण
लेखक : संग्राहक : पू. आ. भ. श्री पुण्योदयसागर सूरीश्वरजी मुनि श्री महाभसागरजी
1. आचारांग : माता समान, दाहिने पांव रुप, प्रमाण : 1800 पद ।
श्रुत स्कंध :- 2 :- (1) ब्रह्मचर्य, अध्ययन, (2) आचारांग 16-अध्ययन ।
वर्णन - गोचरी जाने की विधि, साधु जीवन की उपयोगी जानकारी, पृथ्वी आदि छः काय के जीवों का निरुपण ।
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