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________________ २७०७090909009009009090050७०७09090090909050७०७090७०७७०७०७ जिन आगम के १२ अंग अनन्त करुणा सागर, गुणों के रत्नाकर, दर्शन के दिवाकर भगवंत ने जगत के जीवों के कल्याण के लिए द्वादशांगी रुप वाणी की प्ररूपणा (रचना) की। इसमें प्रथम अंग - आचारांग सूत्र 18,000 पद प्रमाण है। सभी तीर्थंकरों ने सर्वप्रथम आचारांग का ही उपदेश दिया है । महाविदेह क्षेत्र के वर्तमान विहरमान तीर्थंकर भी सर्वप्रथम आचारांग का ही उपदेश देते हैं। मोक्ष का आव्याबाध (बाधा रहित) सुख प्राप्त करने के लिए आचार जरूरी है। इस सूत्र में ऐसे गहन भाव भरे हैं, जैसे गागर में सागर । आचारांग आध्यात्म की अमूल्य निधि है। इस सूत्र में साधु के आचार क्या हैं ? उनके करने जैसा क्या है ? संतों को सतत जागृत रहने के लिए यह प्रथम सूत्र अत्यन्त शिक्षाप्रद है । यह सूत्र माता समान, दाहिने पांव समान है। दूसरा अंग : सूयगडांग सूत्र - इस सूत्र में साधु को शिक्षा दी गई है। यह सूत्र बांया अंग के समान है और इसे पिता की उपमा दी है। जो साधक आधाकर्मी आहार करते हैं, उनकी दशा वैशालिक मछली जैसी होती है । ढंक और कंख नामक पक्षी पानी के बहाव में आई हई वैशालिक मछली को अपनी तीक्ष्ण चोंच द्वारा उसे बिंध देते हैं और उसका मांस खाते हैं । मछली तड़पती हुई, चिल्लाते हुए मृत्यु की शरण में चली जाती है। आधाकर्मी आहार : दोषित आहार ढंक और कांख पक्षी : आहार खाने से बंधे कर्म मछली को चोंच में पिरोना :जीव को पिरोना तीसरा अंग : ढाणांग सूत्र : यह दाहिनी पिंडली समान है, जिसमें 1 से 10 बोल का वर्णन आता है। चौथा अंग : समवायांग सूत्र : यह बांयी पिंडली समान है। ७०७७०७00000000000361050905050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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