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________________ IIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII * आठ वर्ष के अतिमुक्त कुमार ने वैराग्य भाव जागृत होते माता-पिता के समक्ष इस प्रकार आज्ञा मांगी - “हे माता-पिता ! मैं जानता हूँ वह नहीं जानता एवं जो नहीं जानता वह मैं जानता हूँ।” अद्भुत विनय एवं आंतरदृष्टि ! अर्थात् मेरी मृत्यु कब होगी, मैं कहां जाऊँगा, तत्वज्ञान से मैं अज्ञात हूँ, और इसका ज्ञान प्राप्त करने के लिए संयम ग्रहण करने की इच्छा रखता हूँ। अनुत्तरोपपातिक दशांग आगम सूत्र में स्वयं महावीर भगवान द्वारा जिसकी अप्रतिम प्रशंसा हुई थी वह धन्ना अणगार, दीक्षा के प्रथम दिन ही आजीवन छट्ठ के पारणे आयम्बिल करने की प्रतिज्ञा लेकर, आठ माह में अजोड़ तपस्या, उत्कृष्ट भाव से कर, एक माह की अंतिम साधना कर सर्वार्थ सिद्ध विमान में उत्पन्न हुए । एकाभवतारी बन सिद्धदशा प्राप्त करेंगे। * तपस्वी गुणीजनों के गुणानुवाद नि:संकोच करें, प्रमोद भावना में कभी प्रमाद न करें। धन्ना अणगार की प्रशंसा, गुणानुवाद तीर्थंकर ने भी स्व मुख से किया । प्रेरणा लेकर हम भी धन्य पलों से मनाना सीखें। * विपाक सूत्र आगम में : जो देय, दाता एवं प्रतिग्राहक पात्र तीनों शुद्ध हो तो वह दान जन्म मरण के बंधन को तोड़ने वाला बन जाता है। * दान - शुद्ध द्रव्य, निर्दोष वस्तु, शुद्ध परिणामी धन। *- दाता - पवित्र, गोचरी के नियमों के आधीन रहते श्रावक । * लेनार - महातपस्वी, अणगार, श्रमण । ऐसी त्रिकरण शुद्धि एवं विशुद्ध भावना उर्ध्वगति के पंथ पर ले जाती है । सुबाहुकुमार की धर्मकथा ऐसी ही घटना को प्रेरणा देती है। * उववाई उपांग सूत्र आगम में : भगवान महावीर के देह वैभव एवं गुण वैभव का वर्णन एक पच्चीस (25) लाईन के वाक्य से एवं गुणों का वर्णन 63 लाईन के दीर्घतम वाक्य रचना से किया है। ७०७७०७0000000000035390090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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