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________________ GOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG शतपाक तेल एवं सहस्त्रपाक तेल, हरे जठीमध (Licorice) का घोल एवं बाल धोने में आंवले उपयोग करते थे। श्रीमंत संख्या में कम परन्तु बहुमूल्य आभूषण पहनते थे। पुरुषों में अंगूठी पहनने का विशेष प्रचलन था । भोजन के पश्चात् मुखवास की प्रथा थी। कन्या के लग्न में दहेज दिया जाता था। * आत्मा अरुपी है । ज्ञान गुण की उपलब्धि भी अरुपी दृश्य में ही होती है । जड़ पदार्थ रुपी होते हैं, इस हेतु ज्ञान उनका गुण नहीं हो सकता। * साधु का महाव्रत रत्न खरीदने के बराबर कहा जाता है । रत्नपूर्ण ही खरीदना पड़ता है। श्रावक के व्रत स्वर्ण खरीदने के बराबर कहा जाता है । शक्ति अनुसार खरीद लो। अंतगड़ सूत्र के आधार पर अणगार-साधु धर्म स्वीकारके, जो महात्मा चरम शरीर है, उसी भव में मोक्ष जाने वाले है और अंतकाल में अंतःमुहूर्त में केवलज्ञान प्राप्त करके, धर्मदेशना दिए बिना ही मुक्ति को प्राप्त करने वाले, संसार को संपूर्णत: अंत करने वाले जीव हैं, वह अंतकृत केवली कहे जाते __ कृष्ण वासुदेव के ही परिवार के 51 (इक्यावन) चरित्रवान आत्माओं ने अंतकृत केवली पद को प्राप्त किया है। उसमें श्रीकृष्ण के 10 काका, 25 भाई, 8 पत्नी, 2 पुत्रवधू, 3 भतीजे, 2 पुत्र, 1 पौत्र की समावेश है । इन समस्त महात्माओं ने अरिष्टनेमि भगवान के समवसरण में आकर धर्मश्रवण प्राप्त कर, दीक्षा अंगीकार कर मुक्ति का पाया है। * श्रीकृष्ण वासुदेव ने उत्कृष्ट रसपूर्ण धर्मदलाली करके तीर्थंकर नामकर्म निकाचित किया था। वे आगामी चौबीसी में 12वें तीर्थंकर अममनाथ स्वामी बनेंगे। * पाँच माह तेरह दिनों में ग्यारह सौ इकतालीस (1141) व्यक्तियों की बेधड़क हत्या (978 पुरुष + 163 स्त्रियाँ) करने वाला अर्जुन माली, सुदर्शन सेठ की श्रद्धा के सुदर्शन से प्रभावित होकर, अणगार बना । छट्ठ पारणे, छट्ठ करके, अद्भुत समता, सहनशीलता, क्षमाभावना, धैर्य आदि की पराकाष्ठा को पाकर, मात्र छ: माह में, अष्ट कर्मों का क्षय कर भगवान महावीर के पहले ही मोक्ष प्राप्त किया। 50505050505050505050505000352900900505050505050090050
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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