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©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® को बचा लेता है । मुनिवेश में उत्तम साधुत्व के आचार-तप-ज्ञान-ध्यान कर अंतिम समय में संलेखना कर अंतिम श्रासोच्छावास द्वारा आठों कर्म का क्षय कर सिद्ध बनते हैं। रसिक जानकारियाँ :- आगम सूत्र में से .. * समवायांग सूत्र : भगवान ऋषभ से तीर्थंकर महावीर का विशेष अवधान रुप, अंतर, ____ एक कोडाकोड़ी सागरोपम था। * भगवती सूत्र : आगम के रचनाकार सुधर्मास्वामीजी थे। उसका संकल्न ई.स. पाँचवी
शताब्दी में श्री देव(गणि क्षमाश्रमण ने किया। * मेघकुमार के मिथ्यात्वी जीव ने मात्र जीवों के प्रति अनुकंपा के भाव से समकित पाया
था। * मल्लीनाथ तीर्थंकर का स्त्रीवेद में जन्म लेना अवसर्पिणी काल की आश्चर्यकारक
घटना है। * स्वयं के तीनों भव अलग-अलग होने के पश्चात् तीनों भव में भगवान महावीर मिले।
(1) मानव का नंद मणियार का भव (2) तिर्यंच का मेंढ़क का भव एवं (3) दुर्दुशांक
देव का भव। * भगवान के दर्शन की प्रबल इच्छा हो तो तिर्यंच का भव भी अवरोध रुप नहीं। * नंदिफल वृक्ष के फल मीठे, छाया मधुरी, देखने में मनमोहक फिर भी विषैला होता है।
किंपाक फल जैसा ही विषैला । मात्र दिखावा से सावधान रहें। * आगम सूत्रों में जहाँ-जहाँ राजकुमारों को संयम लेने के भाव जागृत होते हैं, वहाँ
राजकुमार स्वयं की 8 (आठ) या 32 (बत्तीस) पत्नियों से आज्ञा नहीं माँगते ।
माता-पिता से आज्ञा लेते हैं । यह बात आज के युग में उल्लेखनीय है। * शरीर, संबंध एवं संपत्ति यह तीनों अपनी कमजोर कड़ियाँ हैं । इसके कारण ही
धर्माराधना, साधना में अवरोध आता है। * महावीर प्रभु के समय में श्रावकों की जीवनशैली, खान-पान, रहन-सहन, सहज,
सरल एवं पथ्यकारी थी। लोगों में आभूषण धारण करने की रुचि थी।मालिश विधि में 9@G©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 351 90GOOGOOGOGOGOG@GOOGOGOD