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________________ १९ 8. पूर्व की क्रिया सहित आठ माह समग्र आरंभ न करने रुप आठवीं प्रतिमा आरंभ त्याग। 9. पूर्व की क्रिया सहित नौ माह सेवक द्वारा कोई आरंभ न करवाने रुप नवीं प्रतिमा । 10. पूर्व की क्रिया सहित दस माह स्वयं के निमित्त से बनाया भोजन न करने पर दसवीं प्रतिमा । 11. पूर्व की क्रिया सहित बारह माह मुंडन अथवा लोच कर रजोहरण तथा पात्रादिक ग्रहण कर, काया द्वारा धर्म का पालन कर, साधु की तरह विचरण एवं कुटुम्ब में प्रतिमाप्रपनस्य, श्रावकस्य भिक्षां देहि बोलकर भिक्षा मांगे । यह ग्यारह प्रतिमा अतिचार रहित वहन करते पांच वर्ष पांच माह होते हैं । यह प्रतिमाएँ कार्यशुद्धि एवं मन शुद्धि करते आनंद श्रावक को अवधिज्ञान हुआ । आगम के उदाहरणों (आठवां अंतगड़ सुत्र) : अंतगड़ सूत्र में, अणगार - साधु धर्म को स्वीकार कर जो महात्माएं चरम शरीरी हैं, उसी भव में मोक्ष जाने वाले हैं। अंतकाल में अंतमुहुर्त में ही केवलज्ञान प्राप्त कर, धर्मदेशना दिए बिना ही मुक्ति प्राप्त करने वाली आत्मा को अंतगड़ केवली कहते हैं । बावीसवें तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमी के शासन में 51 (इक्यावन ) महात्माएँ एवं चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी शासन के उनचालीस (39) महात्माएँ अंतगड़ केवली हुए, उनका वर्णन इस आगम में है । इक्यावन महात्माएँ कृष्ण वासुदेव के ही परिवार जन थे । अंतगड़ केवली में कृष्ण महाराजा के दस काका, पच्चीस भाई, आठ पत्नी, दो पुत्रवधू, तीन भतीजे, दो पुत्र, एक पौत्र थे, यह सभी यादव कुल के राजवंशी थे । श्री अरिष्टनेमि भगवान के समवसरण में आए, धर्मश्रवण करे, माता-पिता की आज्ञा से दीक्षा ग्रहण करे । जैसे कोई व्यक्ति घर में अचानक आग लगते समय अल्प वजनी एवं बहुमूल्यवान वस्तुओं को लेकर बाहर निकलता है, उसी प्रकार जरा-जन्म-मरण की अग्नि में मानव जीवन भस्म हो उसके पहले अगुरुलघु आत्मा 350
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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