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GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOG __ कामदेव श्रावक को धर्मसाधना में देवकृत उपसर्ग आया । देव ने पिशाच, हाथी एवं सर्प का वैक्रिय रुप कर धर्म श्रद्धा से विचलित करने का प्रयत्न किया, परंतु देव सफल नहीं हुआ। कामदेव प्रियधर्मी एवं दृढधर्मी श्रावक थे । स्वयं महावीर भगवान के मुख से उनकी प्रशंसा होती थी।
चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक एवं सकडालपुत्र चारों को देवकृत उपसर्ग हुए । देव ने क्रमश: तीन बार पुत्र वध किए तब तक भी श्रावक चलित नहीं हुए।
चुलनीपिता को मातृवध की धमकी भी दी वं उससे चलित होकर व्रत भंग हुआ । माता ने प्रेरणा देकर प्रायश्चित करवाया।
कुंडकौलिक की श्रद्धा समझपूर्वक की होने से देव के विकृत कथन से चलित नहीं हुए। नियतिवाद का युक्तिपूर्वक खंडन कर देव को निरुत्तर किया। * उत्कृष्ट प्रकार के श्रावकों की प्रतिमा :1. प्रथम छः आगार रहित तथा शंका कांक्षादि पाँच अतिचार रहित सम्यक्त्व नाम
की पहेली प्रतिमा एक माह तक धारण करें। 2. पूर्व की (प्रथम प्रतिमा) सहित बारह व्रत पालन रुप दूसरी प्रतिमा दो माह धारण
करें। 3. पूर्व की क्रिया सहित सामायिक नाम की तीसरी प्रतिमा तीन माह धारण करें। 4. पूर्व की क्रिया सहित चार माह तक पर्व के दिनों में पौषध नाम की प्रतिमा धारण
करें। (पर्व - अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा एवं अमावस्या यह चार पर्वणी) 5. पूर्व की क्रिया सहित पांच माह तक पर्वणी के पौषध में रात्रि के चारों प्रहर
कायोत्सर्ग रहकर कायोत्सर्ग नामक पांचवी प्रतिमा धारण करें। 6. पूर्व की क्रिया सहित छ: माह अतिचार दोष रहित ब्रह्मचर्य का पालन करें वह
छट्ठी प्रतिमा। 7. पूर्व की क्रिया सहित सात माह सचित्त का वर्जन करने रुप सातवीं प्रतिमा।
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