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________________ GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OGOGOGOGOGOG एकमात्र हेतु होने से आहार में अनासक्त भाव टिकाने का यह एक उत्तम उदाहरण है। * 1000 वर्ष की तप-संयम की साधना का फल तीन दिन में भोगासक्ति में रहकर कुंडरिक मुनि ने गुमा दिया और सातवीं नरक में गए तथा संसार से उदासीन ऐसा उनके भाई पुंडरिक राजा तीन दिनों में दीक्षा का वेश धारण कर सर्वार्थ सिद्धवासी बन गए। दोनों भाइयों की अंतिम समय में शारीरिक वेदना समान होने के पश्चात् भी, दूसरे भव में 33 सागरोपम की समान स्थिति होने के बाद भी, आत्म परिणाम अनुसार जीवों की गति, उत्पत्ति, निम्न एवं उच्च स्थान में होती है। 'आगम के उदाहरण (सातवां उपासक दशांग सूत्र) * भगवान महावीर के एक लाख उनसाठ हजार (1,59,000) उत्कृष्ट श्रावकों में सर्वश्रेष्ठ 10 श्रावक थे । दसों श्रावक ने 12 व्रत, 11 प्रतिमा का पालन किया । 20 वर्ष तक श्रावक धर्म का पालन किया । उसमें भी अंतिम 6 वर्ष गृहस्थ प्रवृत्ति में से निवृत्ति लेकर आत्मसाधना की । अंत में 1 माह का संथारा कर समाधिमरण प्राप्त किया । प्रथम देवलोक गमन, वहां 4 पल्योपम का आयुष्य, वहां से महाविदेह में जन्म एवं वहाँ से सिद्ध बनेंगे। * 10 श्रावकों के नाम : आनंद, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुंडकौलिक, सकडालपुत्र, महाशतक, नंदिनी पिता, शालिही पिता। आनंद श्रावक की दृढ़ता, कामदेव की व्रत की दृढ़ता, कुंडकौलिक की तत्व की समझ, सकडालपुत्र की सरलता, महाशतक की पत्नि से प्रतिकूल संयोग होने के बावजूद भी धर्मोपासना में दृढ़ता प्रेरणादायी थी। * मुनिदर्शन हेतु पांच अभिगम : (Discipline) सचित्त त्याग, अचित्त का विवेक, मुख पर रुमाल अथवा मुहपत्ती, हाथ जोड़ना, मन की स्थिरता धारण करना। ७०७७०७00000000000348509090050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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