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________________ GG 'दृष्टिवाद का अध्ययन कराऊँ, परंतु इसके लिए संसार छोड़ना पड़ेगा । साधुत्व जीवन, अंगीकृत करना होगा, क्या इस हेतु तेरी तैयारी है ?' ने कहा गुरु जो कहे वह करना । गुरु ने भी देखा, यह बालक एक बड़ा श्रुतधर बनेगा । इस हेतु बातचीत की। साधुवेश धारण किया, दीक्षा ली । इसके परिणामस्वरुप संघ पर अति महान उपकार हुआ। जो आर्यरक्षित सूरि बने । आर्यरक्षित सूरि ने 1. चरण करणानुयोग, 2. द्रव्यानुयोग, 3. धर्मकथानुयोग, 4. गणितानुयोग, आगमों को (अनुयोग - व्याख्या या व्याख्यान) चार अनुयोगों में विभक्त करके अल्प क्षयोपशम वाले साधकों के लिए श्रुत साधना सरल सुगम की । वह कोई छोटा उपकार नहीं है । आगम के उदाहरण (ज्ञाता धर्मकथा : छट्ठवां अंगसूत्र) * तीन अलग-अलग गति में एक ही जीवात्मा का महावीर प्रभु के साथ संगम हुआ । मानव का भव - नंद मणियार, सांसारिक हेतु से अट्ठम पौषध किया । तिर्यंच का भव: मेंढक का । देव का भव : दुर्दुरांक देव । तिर्यंच के भव में पश्चाताप के साथ तप एवं भगवान के दर्शन की प्रबल इच्छा द्वारा सद्गुरु रुप भगवान मिले । देव का भव प्राप्त हुआ । श्रावक नंद मणियार ने भ. महावीर स्वामी के उपदेश से समकित प्राप्त किया था। एक बार चतुर्दशी के प्रतिक्रमण के बाद श्रावक रात्रि में धर्मध्यान कर रहा था, उस समय प्यास के कारण आर्तध्यान किया । प्रातः अनेक जीवों के पानी के विरह को दूर करने हेतु से कुंए, वाव, तालाब बनवाना शुरु किया । रागदशा के कारण कुंए में मेंढक बने । * अनिवार्य संयोगों में स्वयं के प्राण बचाने के लिए धना सार्थवाह ने स्वयं की ही पुत्री का मांस रुधिर पकाकर आहार किया था । इतना होने पर भी उसके पीछे देह टिकाने का 347
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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