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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® 14 विद्या अध्ययन कर आए उनके नाम : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छंद, ज्योतिष, निरुक्त, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, मीमांसा, ज्ञान विस्तार, धर्मशास्त्र, पुराण । यह विद्याएं कभी मिथ्यात्व वर्धक हो सकती हैं परंतु नास्तिकता पोषक तो ना ही हैं। माँ ने कहा - तू दृष्टिवाद पढ़े तो मुझे आनंद मिले। परन्तु माँ यह मुझे कौन पढ़ाएगा? “तेरे मामा दीक्षित हुए हैं । आर्य तोसली पुत्र उनका नाम है । उनके पास जा वह तुझे दृष्टिवाद पढ़ाएंगे । इतना ध्यान रखना कि वह तुझे जो कहे तू करना । आर्यरक्षित समझ गए। घर में पिता, सभी स्वजन वैदिक मार्ग के अनुयायी एवं माँ जैन धर्म के सम्यग्दृष्टि थे। विघ्नों को स्वयं देखने के पश्चात् भी माँ के प्रति अपूर्व वात्सल्य होने से सब कुछ सहन करने के लिए तैयार होकर अगले दिन प्रातः शीघ्र तोसली पुत्र' गुरु के पास जाने को निकल पड़े। याद रहे, राजा का मान-पान ठुकराया, पिता की तथा स्वजनों की धमकियाँ सहन की। माँ कहे वही सत्य ऐसी श्रद्धा भी थी। ___ मार्ग में मामा महाराज को मिलने जा रहे एक परिचित स्वजन मिले । 'यह गन्ने तुम्हारे लिए भेंट लाया हूँ।' साढ़े नौ गन्ने थे । दृष्टिवाद के साढ़े नौ भाग का ज्ञान प्राप्त होगा ऐसा संकेत मिला। ‘इक्षुवाटक' गन्ने की वाटिका में तोसली पुत्र' महाराज विराजमान थे, वहां गए। विधि का ज्ञान नहीं था कि वंदन किस प्रकार करना । बाहर खड़े रहे, वहां एक ढड्डर' नामक श्रावक आया । मस्तक पर पगड़ी, कंधे पर खेस । उपाश्रय के द्वार पर 'निसीहि' बोलकर अंदर गए। ईरियावही कर गुरु भगवंत को द्वादशावर्त वंदन किया एवं गुरु की आज्ञा प्राप्त कर बैठ गए। एक ही बार निरीक्षण कर आर्यरक्षित ने अंदर जाकर यही विधि की । परंतु सभा को प्रणाम नहीं किया और बैठ गए। भगवन्त, मुझे श्रावक्त्व के परिणाम अभी ही आए हैं । मैं रुद्रसोमा का पुत्र दृष्टिवाद के अध्ययन हेतु आपके पास आया हूँ।' GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 346 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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