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एक बार आंख दुखने लगी, सुजन आ गई। अत्यन्त पीड़ा हुई। अनेक वैद्यों को बुलाया, परंतु कोई मेरे रोग को दूर नहीं कर सका । रोग मुक्त करने वाले को मेरे पिता आधी सम्पत्ति देने के लिए तैयार थे । माता अत्यन्त बैचेन । कोई दुःख में से दूर कर सके ऐसा कोई नहीं। यही मेरी अनाथता । मुझे लगा कि दुःख निवारण के कोई और अन्य उपाय होना चाहिए।
मेरे दुःखों का कारण पूर्व कर्म होने चाहिए, उसका मुझे ज्ञान हुआ । एक श्रमण ने मुझे समझाया, कर्म के हेतु को छोड़ क्षमा से कीर्ति को प्राप्त कर, सुखी हो जाएगा। ऐसा संकल्प किया और विचारते-विचारते निद्रा आ गई। वेदना शांत हो गई, रोग धीरे-धीरे जाने लगा। ___ मुनि ने कहा, जिनेश्वर देव का शासन जयवंत है, उनके उपदेश में श्रद्धा रखें । यही कल्याण का मार्ग है।
श्रेणिक ने यह सुनकर बौद्ध धर्म का त्याग कर जैन धर्म को स्वीकार किया। मुनिवरों के संग से उपदेश से समकित प्राप्त किया जा सकता है, दृढ़ भी हो सकता है।
हालरथु एवं माताओं * हालरडे में परम पद की याद दिलाती माताएँ * अनसुया हालरडा गाती है ;
शुद्धोऽसि, बुद्धोऽसि, संसार माया परिवर्जितोऽसि
'तु शुद्ध है, तु बुद्ध है, तु संसार की माया से रहित है।' * माता मदालसा - कुरु यत्नम् अजन्मनि ।
पुनः जन्म लेना न पड़े ऐसे परमपद की मेहनत करना । * राजा के मस्तक के बाल को संवारते समय रानी कह रही है, 'राजन् ! दूत आया!'
राजा चहुँओर दृष्टि करते हैं परन्तु दूत दिखता नहीं । तब रानी राजा के मस्तक से सफेद बाल निकालकर राजा के हाथ में रखती है । यह रहा दूत ! और सफेद बाल
ने राजा में परिवर्तन किया । साधुता की साधना करने निकल पड़ें।' * बारह व्रत ग्रहण करने के पहले सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन, ग्रहण करना आवश्यक है।
उपधान करो, दीक्षा लो या चतुर्थ व्रत स्वीकारो, सर्वप्रथम समकित की प्राप्ति
आवश्यक ही है। समकति स्वीकारे बिना जिनशासन में प्रवेश नहीं मिलता। GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOOGO90 344 GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGe