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बादशाह अकबर अकबर राजा का दृष्टांत : प्रेरणा पत्र, वर्ष 18, अंक 9 , दिस. 16, 2011 सत् चरित्रों का श्रवण करना चाहिए । अनंत उपकारी, अनंत कल्याणकारी, गुरु भगवंत श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी म.सा. ने “ललित विस्तरा” ग्रंथ में जीव के चरमावर्त में प्रवेश बाद आध्यात्मिक विकास के लिए कर्तव्य स्वरुप गुणों का वर्णन किया गया है। ___ चरमावर्ती जीव का योग मार्ग में प्रवेश हो उसके लिए आर्य संस्कृति में सुनने का अपूर्व योग रखने में आया है।
* पारायण में वांचन, कथा श्रवण के लिए हजारों लाखों मनुष्य आते हैं और उसके लिए सारी व्यवस्थाएँ की जाती हैं।
* जीवन में श्रवण द्वारा शांति व समाधि प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
* जिन शासन में प्रत्येक जैन के लिए व्याख्यान श्रवण कर्तव्य रुप में बताया है। प्रात: दो कर्तव्यों में 1. पूजा, 2. प्रवचन श्रवण करने में प्रवचन' श्रवण को प्रधान कर्तव्य कहा है।
* कहीं-कहीं प्रवचन के समय पूजा करने का निषेध भी किया गया है, ऐसा करने का मुख्य कारण यह है कि - जिनवाणी अंतर हृदय में उतरेगी तो जीवन में धर्म के बीज (बोधि बीज) का वपन होगा।
* प्रवचन के बाद प्रभावना की व्यवस्था भी रहती है।
* प्रभु देशना देवों द्वारा रचित समवसरण से प्रसारित होती है । देवदुंदुभि का नाद करके जनता को जागृत करने का प्रयास होता है । जैनों के उपाश्रय वैभवमय होते हैं; जो समवसरण की याद दिलाते हैं । यह सब देखकर हृदय में आनंद उत्पन्न होने से धर्म बीज, योग बीज और सम्यक्त्व बीज का रोपण होता है।
* प्रभावना बच्चों को आकर्षित करने के लिए की जाती है । एकांतवाद से ग्रसित हो यह न कहें कि लालच देकर धर्म तरफ आकर्षित करने के लिए प्रभावना दी जाती है।
संक्षिप्त में जीवन में धर्म-प्रवेश के लिए, महापुरुषों के चरित्र श्रवण करना जरूरी है।
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