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________________ भूख का दुःख - रोचक कथा भूख के दुःख को तप के द्वारा निर्जरा से दूर किया जा सकता है । इसका दृष्टांत रोचक तरीके से आश्चर्य उत्पन्न करने वाला है । GG कौरव-पांडव के युद्ध में कौरव वंश का नाश हो गया । अपने 100 पुत्रों के मृत्यु के दुःख में दु:खी हुई गांधारी ने ऐसा रुदन- आक्रंदन प्रारंभ कर दिया कि चारों दिशाएँ रो उठी। सुंदर और बहादुर राजकुमारों के युवा योद्धाओं की अकल्पनीय दशा हो गई थी । रो-रोकर हिचकियाँ भर-भरकर थक गई । कितना समय बाद रो-रोकर पछाड़ खाते-खाते थक जाने पर भूख लग गई, भूख ऐसी लगी कि रहा न जाए। आस-पास देखा, रणभूमि में क्या मिले ? दूर एक आम का पेड़ दिखाई दिया । पूरा पेड़ आम्रफलों से लदा-लूम दिखा, पेड़ के पास पहुंची। फलों की खुशबू से भूख के कारण मन विह्वल हो गया। आस-पास देखा पत्थर आदि कोई ऐसी वस्तु दिखाई नहीं दी जिसे फैंककर फल गिराया जा सके । ऊँचे कूद कर फल पकड़ने की चेष्टा भी निष्फल हो गई । भूख क्या कराती है ? देखिए : 1 जब अन्य कुछ भी उपाय नहीं दिखा तो राजमाता गांधारी थकी हारी भूख से पागल रणभूमि से अपनी संतानों के शवों को खींच कर पेड़ तक लाई और उनके ऊपर चढ़कर फल उतारे । यह भूख का दुःख । परम कृपालु, निर्ग्रथ, घोर तपस्वी परमात्मा द्वारा आचरित, उपासित तीव्र तप को अनेक पुण्यात्माओं ने अनुसरित किया और अभी भी कर रही हैं । तप के द्वारा रोग, संताप, और कर्मों का नाश होता है, लब्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है । प्रभु ! फरमाते हैं कि तुम भी बाह्य- आभ्यंतर दोनों प्रकार के तप करना, प्रायश्चित, विनय, वैयावच्च, स्वाध्याय, ध्यान, कार्योत्सर्ग- ये छ: प्रकार के तप करना । (मालकौंस) मने महावीर ना गुण . .... अनशन उणोदरी, वृत्ति, संक्षेप रस त्याग, संलीनता, काय क्लेश; षट् बाह्य तपनी महिमा विशेष करावे अंतर तपमां प्रवेश । प्रायश्चित, विनय, वैयावच्च, स्वाध्याय, ध्यान अने कायोत्सर्ग; षट् आंतर तपनी महिमा विशेष, छोड़ावे अंतरना राग ने द्वेष ।। जे जाणे तपना आ बार भेद, ते माणे निर्जरा कर्म नो छेद, जाए जीवनो भवोभवनो मेद, द्वादश तपनो छे महिमा विशेष ॥ 334 " श्रद्धांध"
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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