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________________ G * कार्तिक सेठ का विचार मंथन चला- मेरा कैसा प्रमाद कि मैं संसार में रहा, चारित्र ले लेता तो आज इस मिथ्यात्वी गैरिक का अपमान न सहना पड़ता । राजाज्ञा का पालन करना पड़ा । * इस विचारधारा के साथ ही कार्तिक सेठ ने उस समय मुनिसुव्रत स्वामी का विचरण काल था, उनके पास जाकर चारित्र ले लिया । द्वादशांगी श्रुत का अभ्यास करके, संलेखना अनशन करके समाधिमरण से देवलोक जाकर इन्द्र बने । - ध्यान में रखने योग्य :- गुण किसको कहा जाता है ? तात्विक गुण यानि क्या ? आत्म विकास तात्विक गुण के आधार पर ही होता है या अतात्विक गुण के आधार पर ? बगुला भी ध्यान तो करता है, क्या उसे गुण कहा जाता है ? अपनी छाप जमाने के लिए नीति-नियम पालन करे तो क्या उसको गुण कहा जाता है ? काम और अर्थ का ही उद्देश्य हो तो धर्म क्रिया भी गुण भी नहीं कहा जा सकता । त्रिशला - देवानंदा धर्मकथानुयोग (भगवती सूत्र : भाग - 2 ) त्रिशला माता ने पूर्व भव में शाता वेदनीय कर्म का सघन बंध किया था, इसलिए जिन्दगी के अंतिम क्षण तक भी उनको सभी तरफ से शांति समाधि रही । देवानंदा ने जेठाणी रूप में पूर्व जन्म में देराणी (त्रिशला ) को बहुत रुलाया था । मारा भी, देवर से भी मार पिटवाई, बहुत शोक संतप्त, और कष्ट दिलवाकर भयंकर असाता वेदनीय कर्म का बंधन किया, जो देवानंदा के भव में भोगना पड़ा । आयुष्य कर्म :- कीड़ी को मारने वाला मैं यदि बिल्ली बनु तो चूहा या कबूतर को पकड़ फाड़े बिना नहीं रह सकता। मेरी जीवन रक्षा की सारी साधना बेकार हो जाएगी । पूर्व क्रोड़ वर्ष तक उच्च संयम पालने वाले, मासक्षमण जैसे महान तपस्वी साधु आयु बंध करते समय सीढ़ी से नीचे गिरे और मोक्ष जाने के बदले पीछे के भव में देव या मानव न होकर चंडकौशिक नाग बना । नहीं ! अपने को ऐसी भूल नहीं करना । अनशनी - श्रावक को उच्च स्थान पर जातेजाते अंत समय में बेर (फल) दिखाई दे गए और उनमें आसक्ति हो गई एवं (मरण समय) मृत्यु समय मर कर बोर बना । रानी के लंबे और लहराते चमकीले काले बालों में आसक्त बना राजा मर कर रानी के बाल में 'जूं' बनकर जन्म लिया । 333
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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