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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OGOG कर पास में सरोवर (तालाब) में शरीर शुद्धि के लिए गई, इतने में एक हाथी आया और उसने रानी को सूंड में लेकर आकाश में उछाल दिया । नभोमंडल में जाते जुए 'मणिप्रभ' विद्याधर ने उसे हाथों में झेल लिया । अवधि ज्ञान से देखकर उसने मदन रेखा को बोला- तेरे पत्र को पद्मरथ राजा ले गया और पुत्र रहित उसकी पत्नी को सौंप दिया है। उसने उसको सांत्वना दी और स्वयं को पति रुप स्वीकार करने का आग्रह किया । मदन रेखा ने कहा - पहले मुझे नंदीश्वर द्वीप की यात्रा करा दो फिर जैसा होगा देखेंगे। विद्याधर और मदन रेखा नंदीश्वर द्वीप गए, वहां दर्शन वंदन कर 'मणिचूड' नामक राजर्षि जो पूर्व में (गृहस्थी में) चक्रवर्ती थे उनकी धर्मसभा में उपदेश सुनने के वंदन करके बैठ गए। नंद्वीश्वर द्वीप पर मदन रेखा का पति युगबाहु मरकर पांचवे देवलोक में उत्पन्न हुआ था वह अवधि ज्ञान के बल से वहां दर्शन करने आया । दर्शन वंदन करने के बाद पत्नी मदन रेखा को देखकर उसको वहां से उठाकर मिथिला नगरी में ले गया । उसको अपना स्वरूप दिखाकर पहिचान कराकर पुत्र का स्वरुप बता दिया कि वह यहाँ है । पद्मरथ राजा के वहाँ उसको छोड़ दिया । पुत्र को भी माँ का परिचय कराकर चला गया। अब वहाँ मदन रेखा आराम से रहने लगी। उसके पुत्र का नाम नमि रखा गया था । नमिकुमार युवावस्था को प्राप्त हो गया तो 1008 कन्याओं के साथ उसकी शादी हो गई । समय पर पद्मरथ राजा ने नमिकुमार का राज्याभिषेक कर दिया और स्वयं ने दीक्षा ग्रहण कर ली। एक समय नमिराजा का हाथी भाग गया और चंद्रयश के राज्य में पहंच गया तो चंद्रयश ने हस्तिशाला में रख लिया । नमिराजा को मालूम पड़ी तो हाथी को लेने के लिए नमिराजा ने चंद्रयश पर (बड़े भाई) पर चढ़ाई कर दी। दोनों में से किसी को नहीं मालूम कि हम दोनो भाई हैं । माँ के कहने से नमिराजा स्वयं पड़ाव में जाकर भाई के चरणों में नमनपूर्वक मिला, अंगूठी दिखाई तब उसे विश्वास हो गया। उसने अपने छोटे भाई का राज्याभिषेक कर दिया और स्वयं ने दीक्षा ले ली। शरीर में रोग का आना - बिन बुलाए मेहमान जैसा है। एक दिन अचानक नमिराजा के शरीर में दाह ज्वर उत्पन्न हो गया। राजा को चैन नहीं पड़ रही थी। सभी प्रकार से हकीम, वैद्य आदि का इलाज करवा लिया, लेकिन शांति नहीं मिली। अंतिम उपाय यही बचा कि चंदन का शरीर पर विलेपन किया जाए। सभी रानियों ने चंदन घीसना प्रारंभ किया। उनके कंकण (हाथ में पहने कंगन) की बहत तेज आवाज आने लगी। राजा को तेज आवाज सहन नहीं होने लगी तो रानियों ने एक कंगन रखकर सब खोल दिए। घिसाई तो चालू ही रही । राजा को 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO90 329 90GOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGO
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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