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सवि जीव करूँ
हे प्रभु ! मुझे ... विचारों का औदार्य, शांतिमय शक्ति का संचार भक्तिमय प्रेम की प्रेरणा एवं समता गुण की शीतलता के अंकूरों को खिलाने की सतत विचारधारा प्रदान करें ...
मुझे अभी भी कितने ही जीवों को खूब-खूब प्रेम करना बाकी है।
अप्रैल - 89
प्रतिक्रमण दृष्टि अंतर्मुख करी त्यां
माझं अनशन क्लोवायु सुषुप्त मनना अतीत नी केडी पर ऊगी चूक्यांतां पुष्पो अति, विष्यनां !
झरतुं हतुं माहे थी अप्रशस्त 'राग'नुं मीण जे नीतरतुं रघु नयनेथी,
खारूं पीण .... गर्दानी राखणी कर्यं पारणं
चही दृष्टिमां उद्योत अने पा... पा... पगली, समकिन कने .... !!
सितम्बर - 99
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