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अप्पाणं वोसिरामि .....
जिनाज्ञानुसार आराधना कर,
सर्व कर्मों का क्षय कर, मैं मोक्षसुख प्राप्त करूँ तथा सर्वजीवों को भी मोक्ष सुख प्राप्त हो ....
पूर्व के अनंत भवों में अनंत शरीर धारण किए, अनंत संबंध बनाए, , अनंत उपधियाँ
साधन-सामग्री एकत्रित की,
परंतु वोसिराई नहीं ...
इस भव में भी आज तक,
शरीर में से अनंत पुद्गलों, दीर्घनीति, लघुनीति,
मल, श्लेष्म आदि निकले, नकामी वस्तुओं, घर का कचरा, सब्जी-भाजी आदि का कचरा पड़ा रहे,
और संमुर्च्छिम जीव उत्पन्न हों उसमें भागीदार बना ... पुद्गलों को वोसिराया नहीं, उन समस्त पुद्गलों को अब वोसिराता हूँ अरिहंत-सिद्ध-गुरुदेव की साक्षी से
त्रिविधि-त्रिविधि वोसिरामि, वोसिरामी
पच्चक्खाण पडिक्कमामि निंदामि,
गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि .....
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