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________________ GOOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOGOG@GOGOG@GOGOGOGOGOGOG * समकित : मन की रुचि बदलना चाहती है, मन की भ्रमणा को टालना चाहिए। 1. पुद्गल में सुख नहीं ऐसी अनुभूति। 2. पुद्गल की दुनिया अन्य (पर) की है स्व की नहीं। 3. पर-परिणति में रमण करना, यह मेरा स्वभाव नहीं आदि। * सम्यक्त्व प्राप्त जीव को किस में सुख दिखाई देता है ? संयम में। लब्धि संपन्न महात्मा को एक इन्द्रिय में पांचों इन्द्रियों की सुख-शक्ति आ जाती है। कान से देखे, आंख से सुने । केवली मोक्ष की पूर्णता देख सकते हैं, किन्तु अनुभव नहीं कर सकते, सिद्ध मोक्ष की पूर्णता का अनुभव कर सकते हैं। आत्मा के अनंत गुणों में मुख्य गुण वीतरागता। मोहनीय कर्म के क्षय होने पर ही आत्मा को अनंत शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। इस कारण सिद्ध भगवंत नरक के दुःखों को देखकर भयभीत नहीं होते और स्वर्ग में असीमित भौतिक सुखों को देखकर आनंदयुक्त नहीं होते। आवेश रहित दशा है। मोह का विजय करने की अपेक्षा में केवली ओर सिद्ध दोनों समान हैं । वीतरागता को समझने के लिए केवली का मानस समझना आवश्यक है, जैसे-आदिनाथ भगवान के समय भरत-बाहुबली का युद्ध हुआ, उस समय इसी कारण से उन्होंने कोई भी हित शिक्षा नहीं दी । वे निर्लिप्त रहे। भगवान में पर के कल्याण की भावना नहीं होती, किन्तु पर-कल्याण करने की शक्ति-प्रभाव तो रहता ही है । कषाय-युक्त जीव ज्ञान का आनंद नहीं मना सकता, सच्चा आनंद कषाययुक्त जीव ही मना सकता है (अनुभव कर सकता है) * अन्य स्वरुपात्मक गुण:-अगुरुलघु, अमूर्तरुप, अजरामर रुप, अव्याबाध रुप। अगुरुलघु :- अर्थात् समानता भेदभाव रहितता। मोक्ष में गोत्र कर्म का क्षय होने से अगुरुलघु गुण प्रकट होते हैं, सर्जन आत्मा का ही है। जड़ में वह शक्ति ही नहीं । वैज्ञानिक एक मच्छर या मक्खी कभी बना नहीं सकते। ये 5@GOOG©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 315 GOGOGOGOG©®©®©®©®©®©®©®©®©GO
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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